मेरे जैसे हर भारतीय के लिए यह गर्व की बात है कि संदीप उन्नीकृष्णन जैसे जांबाज सोल्जर ने हमारे देश की धरती पर जन्म लिया था। 26 /11 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की उस खौफनाक स्थिति में जिस तरह से मेजर उन्नीकृष्णन ने बिना अपनी जान की परवाह किया, आतंवादियों को ढेर किया और लोगों की जान बचाते हुए अमर हुए थे, उनकी शहीदी की कहानी हमेशा ही कई जेनरेशन को सुनाई जायेगी। ऐसे में अदिवि शेष जो कि ‘मेजर ‘फिल्म लेकर आये हैं, उनकी सोच की तारीफ़ होनी चाहिए, क्योंकि ऐसी कहानियां बनती रहनी जरूरी है, ताकि सच्चे देशभक्त क्या होते हैं, यह तुलना की जा सके। फिल्म मेजर एक ऐसे ही जज्बे और जोश की कहानी से भरपूर है।
क्या है कहानी
मेजर संदीप (अदिवि शेष ) के बचपन की कहानी से शुरू होती है, संदीप को हमेशा से यूनिफॉर्म से प्यार था। माता-पिता की चाहत थी कि डॉक्टर या इंजीनियर बने, लेकिन मेजर ने अपने लिए अपना रास्ता चुना। उनके पेरेंट्स ने हमेशा इस बात को स्वीकार लिया कि संदीप सिर्फ उनका नहीं देश का बेटा है। किसी के दुःख में दुखी होने वाला इंसान ही एक सच्चा सोल्जर हो सकता है। कहानी में संदीप की निजी जिंदगी, प्रेम कहानी और फिर गृहस्थ जीवन पर भी प्रकाश डालने की कोशिश की गई है। एक सोल्जर किस तरह अपने परिवार को समय नहीं दे पाता है, जब उसकी पत्नी एक परेशानी से गुजर रही होती है, कहानी में इसे भी दिखाया गया है। कहानी फिर 26/11 में हुए ताज होटल में हुए आतंकवादी हमले के पूरे माहौल को दर्शाती है, मीडिया की उस दौरान क्या खामिया रही और किस तरह मेजर संदीप ने अपनी सूझ-बूझ से स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की थी। इस पर भी विस्तार से दिखाया गया है। संदीप की यह कहानी उनके जीवन के भावनात्मक पहलू से लेकर इस बात को भी उजागर करती है कि एक सोल्जर सिर्फ ड्यूटी नहीं करता है, मानवता के साथ जीना भी उसके लिए जरूरी है।
बातें जो मुझे बेहद पसंद आयी
सबसे पहले तो फिल्म के मेकर्स को ही इस बात की बधाई दी जानी चाहिए, क्योंकि ऐसी कहानियों का कहा जाना बेहद जरूरी है, ताकि वर्तमान दौर में बात-बात पर खुद को देशभक्त करार करने वालों की आँखें खुलें कि सच्चा देश भक्त कौन होता है, इसके अलावा, एक पारिवारिक जर्नी को भी दिखा कर मेकर्स ने यह समझाने की कोशिश की है कि एक सोल्जर की जिंदगी कितनी कठिन होती है। मेजर जब बॉर्डर पर थे तो वह पाकिस्तानी बच्चों के साथ उस पार जाकर क्रिकेट खेलने लगे थे, यह भी दर्शाता है कि उनके जेहन में हमेशा इंसानियत को अहमियत पहले दी गई है। यह फिल्म सिर्फ वीर गाथा की कहानी नहीं, बल्कि एक मानवता का प्रतीक भी है और वर्तमान दौर में ऐसी फिल्मों की जरूरत है। मेजर का प्रेम प्रसंग एंगल भी बड़ा ही प्यारा है। मीडिया ने इस दौरान किस तरह से बचकाना बिहेव किया था, इसका प्रमाण भी फिल्म में दर्शाया गया है।
बातें जो और बेहतर होने की गुंजाईश थीं
नि : संदेह फिल्म के विषय को चुनने के लिए और इस पर रिसर्च कर काम करने के लिए एक जूनून तो चाहिए, अच्छी बात है कि मेकर्स ने संदीप के पेरेंट्स को इस क्रम में शामिल भी रखा। उस जज्बे को तो सलाम किया भी जाना चाहिए, लेकिन सिनेमा के क्राफ्ट के हिसाब से ट्रीटमेंट को और स्ट्रांग किया जा सकता था। कहानी कुछ ज्यादा ही स्लो पेस से मूव होती है, उस पर काम किया जा सकता था। बहुत जगहों पर सिनेमेटिक लिबर्टी भी ली गई है, वह न भी ली जाती तो कहानी शानदार बनती ही, इस कुछ छोटी-छोटी बातों को और दुरुस्त करने से फिल्म और बेहतर बन सकती थी।
अभिनय
फिल्म में अदिवि शेष एक मिनट के लिए भी नहीं लगे हैं कि वह मेजर संदीप नहीं हैं, उन्होंने हर लिहाज से अपनी बॉडी लैंग्वेज से लेकर, हर तरह से सोल्जर की जिंदगी जीने में जान डाल दी है। वहीं साई मांजरेकर ने भी अच्छी कोशिश की है, उनकी मासूमियत प्यारी लगती है। अच्छा है कि निर्देशक ने उन्हें नो ग्लैम लुक दिया है, शोभिता ने कम दृश्यों में भी प्रभाव छोड़ा है, जिस तरह से उन्होंने होटल में फंस कर, एक जज्बे के साथ सिचुएशन को हैंडल किया है, मैं इमेजिन कर पा रही हूँ कि जब वाकई में यह वाकया हुआ होगा, तो सिचुएशन को हैंडल करना कितना खौफनाक रहा होगा। प्रकाश राज और रेवती दोनों ही टैलेंटेड कलाकार हैं, उन्होंने फिल्म में कुछ भावनात्मक दृश्यों में जान डाल दी है।
कुल मिला कर कहूं, तो यह फिल्म देशभक्ति की भावना जगाती है और संदीप उन्नीकृष्णन को सही मायने में एक श्रद्धांजलि देती है। ऐसी कहानियों का बनते रहना जरूरी है, ताकि मानवता समाज में बची रहे, मैं ऐसा ही मानती हूँ। इसके लिए मैं अदिवि शेष की पीठ थपथपाना चाहूंगी कि उन्होंने इस विषय पर रिसर्च कर, इस कहानी को रूप दिया।