सिनेमा की यही खासियत रही है कि वह अपने माध्यम से ऐसी कहानियां लेकर दर्शकों के सामने आती रहती है, जहाँ भले ही कोई और दूसरा नेटवर्क न पहुंचे। ऐसे में निर्देशक सृजित मुखर्जी, पंकज त्रिपाठी के साथ एक फिल्म लेकर आये हैं शेरदिल, जिसमें ऐसे वर्ग की कहानी है, जो जंगल के आस-पास बसे हैं और उनका अपना अस्तित्व ही नहीं है। पीलभीत सागा की इस कहानी में, ऐसे आम लोगों की कहानी है, जो इस इंतजार में रहते हैं कि सरकार उन्हें अपना समझ कर, कुछ तो ध्यान देगी। ऐसे में मैं यहाँ विस्तार से बता रही हूँ कि इस फिल्म में मुझे क्या खास बातें नजर आयीं, क्या नहीं।
क्या है कहानी
फिल्म की कहानी गंगाराम की है, जो कि अपने गांव के लोगों के लिए कुछ करना चाहता है। गंगाराम का जो गांव है, वह जंगल के पास है, लेकिन सरकार की उन पर नजर नहीं है। वह एक दिन शहर जाता है और उसकी नजर एक सरकारी दफ्तर में पड़े नोटिस पर पड़ती है, जहां लिखा होता है कि अगर कोई बाघ किसी आदमी को खा जाता है, तो गांव के लोग को मुआवजा के रूप में दस लाख रुपए मिलते हैं। गंगाराम अपने गांव के लिए यह बलिदान करने के लिए जंगल में चला जाता है और इन सबके बीच क्या-क्या कहानी में ट्विस्ट आते हैं, यही कहानी का सार है।
बातें जो मुझे पसंद आयीं
फिल्म की कहानी में जिंदगी की फिलोसफी भी दिखाई गई है। यही नहीं, फिल्म में गरीबी को लेकर और सरकारी स्कीम के जो चोंचले होते हैं, उसमें कहीं न कहीं एक अच्छा इंटेंशन दिखता है। कलाकारों ने अभिनय अच्छा किया है।
बातें जो बेहतर हो सकती थीं
मुझे इस फिल्म में जो चूक होती हुई बात नजर आई है कि कहानी में निर्देशक ने एक साथ कई मुद्दों को उठाने की कोशिश की है और इसकी वजह से कहानी किसी एक सार पर नहीं पहुंच पाती है। कहानी में गरीबी, सरकार की अनदेखी, जंगल, जमीन और इंसानियत इन सभी विषय को उठाने और दर्शाने की कोशिश में किसी के साथ भी न्याय नहीं हो पाया है।
अभिनय
पंकज त्रिपाठी की बात करूं, तो वह जब भी किसी फिल्म का हिस्सा होते हैं, तो कहानी में जान डालते ही हैं। इस कहानी को उनके जैसे कलाकार ही जीवंत बना सकते हैं। उन्होंने एक ऐसे इंसान, जो कि अपने लोगों के लिए कुछ करना चाहता है। उन्होंने किरदार को पूरी सहजता से निभाया है। उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। नीरज कबी और पंकज के साथ के दृश्य काफी रोचक बने हैं। नीरज ने भी अपने हिस्से का काम अच्छा किया है। सयानी गुप्ता के लिए खास करने को कुछ नजर नहीं आया है।
कुल मिला कर, यह फिल्म एक अच्छा प्रयास है ऐसी अनछुई कहानियों और ऐसे लोगों की बात करने के लिए, जिनकी गिनती ही नहीं होती है, लेकिन फिल्म जिस अंदाज में और जिस मेसेज के साथ पहुंचनी चाहिए, तो पहुँचने में थोड़ी चूकती है।