इस हफ्ते रिलीज हुई है फिल्म जनहित में जारी, मैंने यह फिल्म देख ली है और मुझे फिल्म में ऐसी कई बातों ने आकर्षित किया है, जिसकी वजह से मुझे लगता है कि आप सबको भी यह फिल्म देखनी चाहिए। फिल्म में मुख्य किरदार निभा रहीं नुसरत भरुचा और अनुद सिंह ने तो शानदार अभिनय किया ही है, फिल्म में सह कलाकारों की भी टोली शानदार है, ऐसे में मैं यहाँ 5 खास बातें बताने जा रही हूँ, जो इस फिल्म को खास बनाती हैं।
फिल्म का यूनिक कांसेप्ट
इस फिल्म की जो सबसे ख़ास बात मुझे लगी है, वह है इस फिल्म का कांसेप्ट, क्योंकि आज तक ऐसी कोई भी फिल्म नहीं बनी है, जिसमें एक महिला को कॉन्डम बेचते हुए दिखाया गया हो और इस विषय को संजीदगी से हैंडल किया गया हो। नुसरत ने अपने किरदार में जो संजीदगी दिखाई है और इस कहानी के सन्देश को लोगों को बिना किसी भाषणबाजी के पहुँचाया है, वह इस कहानी को काफी खास बनाता है।
नुसरत का दमदार किरदार
नुसरत की फिल्म छोरी में भी मुझे उनका किरदार बेहद पसंद आया था, धीरे-धीरे ही सही, लेकिन नुसरत चुन कर अपने लिए विषय चुन रही हैं और उसे बड़े ही सलीके से निभा भी रही हैं। इस फिल्म में भी उन्होंने छोटे शहर की लड़की का किरदार चुना है। उनके अभिनय की यह खासियत है कि वह ग्लैमरस से लेकर मीडिल क्लास या गांव की लड़की के भी किरदार में जम जा रही हैं और इस फिल्म में उनका होना इस कहानी को और खास बना रहा है। महिला किरदार को स्ट्रॉग रूप से प्रेजेंट करती है फिल्म।
बहू के टिपिकल इमेज को तोड़ती है फिल्म
इस फिल्म में नुसरत के किरदार को अपने ससुराल वालों का ख्याल रहते इस कदर दिखाया है, जैसे वह उसका मायका ही हो, अमूमन सास-ससुर और ससुराल के प्रति बहुओं को गॉसिप करते ही दिखाया जाता रहा है, लेकिन इस फिल्म में वह टिपिकल इमेज पूरी तरह से टूटती है।
एक से बढ़ कर एक कलाकार
इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी जो मुझे नजर आयी है कि इस कहानी में कई सारे कलाकार हैं, लेकिन निर्देशक ने ऐसा नहीं किया है कि केवल लीड किरदारों को तवज्जो दी है, बल्कि उन्होंने हर छोटे किरदार को अच्छे से गढ़ा है। नुसरत तो इस कहानी के लिहाज हैं ही। अनुद को भी फिल्म से एक अच्छा ब्रेक मिला है। वहीं फिल्म में मास्टर ब्लास्टर साबित हुए हैं पारितोष त्रिपाठी, जो देवी के रूप में नुसरत के किरदार के बेस्ट फ्रेंड बने हैं। एक ऐसा दोस्त जो जान भी न्योंछावर कर दे, उनके वनलाइनर और कॉमिक टाइमिंग फिल्म की शान हैं। विजय राज का एक अलग ही अवतार फिल्म में नजर आया है। इश्तियाक खान और सपना संद का काम भी कमाल का है। वहीं टीनू आनंद लम्बे समय के बाद पर्दे पर आये हैं और छोटे ही किरदार में सही, अपनी छाप छोड़ने में कामयाब होते हैं।
भाषणबाजी या डबल मीनिंग नहीं है
इस फिल्म की एक और खास बता मुझे यह भी लगी है कि फिल्म में किसी भी तरह की भाषणबाजी नहीं की गई है, हास्य और सटायर के रूप में जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश है, एक ऐसे विषय पर, जिसका नाम लेने में भी लोग शर्म महसूस करते हैं। फिल्म में डबल मीनिंग संवाद भी नहीं है, जो इस फिल्म की गरिमा को बरक़रार रखते हैं। फिल्म के कई वन लाइनर हैं वह कमाल हैं।
कुल मिला कर, मुझे यह फिल्म स्तरीय लगी है और मुझे लगता है कि ऐसी फिल्मों की सराहना जरूरी है, ताकि आगे भी ऐसी महिला प्रधान फिल्में बनती रहें।