लम्बे समय से अक्षय कुमार की फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज ‘का दर्शकों को इंतजार रहा है, लम्बे समय के बाद पीरियड फिल्म दर्शकों के सामने आई है, ऐसे में कहानी जब भारत के एक ऐसे योद्धा की है, जिन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय होना क्या होता है, इस गाथा की कहानी को देखने के लिए उत्सुक होना तो पूरी तरह से लाजमी है। सो, मैं यहाँ विस्तार से बताने जा रही हूँ कि अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर , सोनू सूद और संजय दत्त की यह फिल्म कैसी है और फिल्म देखते हुए मैंने क्या महसूस किया।
क्या है कहानी
कहानी शौर्य सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी है। कहानी मूल रूप से महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो‘ पर आधारित है। फिल्म की शुरुआत में ही मेकर्स ने इस बात का डिस्क्लेमर दे दिया है। पृथ्वीराज (अक्षय कुमार) हिन्दू साम्राज्य के ऐसे शाषक थे, जिन्हें सिर्फ सत्ता से प्यार नहीं था, वह धर्म के लिए ही जीते थे और धर्म के लिए ही मरते थे। वह शत्रु के साथ भी न्याय करने में पीछे नहीं रहते थे। उन्होंने न सिर्फ अपनी आवाम की, बल्कि अपनी धर्म पत्नी को भी सम्मान दिलाया। वह नारी जाति के सम्मान के लिए किस तरह खड़े हुए थे, यह कहानी में विस्तार से दिखाया है। फिल्म में संयोगिता( मानुषी छिल्लर) संग उनका प्रेम रस और प्रेम का सम्मान भी करते हुए दिखाया गया है और इन सबके बीच सुल्तान मोहम्मद गौरी, जो कि एक लालची शाषक था, किस तरह से उसकी कैद में रह कर भी पृथ्वीराज ने अपनी वीरता को नहीं छोड़ा, फिल्म में इसे विस्तार से दिखाया गया है। कहानी दिल्ली, अजमेर और कन्नौज के बीच घूमती है। सिर्फ युद्ध में ही नहीं, निजी जिंदगी में भी किस तरह अपनी जीवन संगिनी को उन्होंने धर्म की रेखा में रह कर पाया, यह भी कहानी में दिखाया गया है और इन सबके बीच पृथ्वी भट्ट (सोनू सूद ) काका ( संजय दत्त) साये की तरह पृथ्वी के साथ रहे, फिल्म में इस पर फोकस किया गया है।
बातें जो मुझे बेहतर लगीं
फिल्म की सबसे खासियत जो मुझे लगी कि निर्देशक चंद्रप्रकाश ने फिल्म में सहयोगी कलाकारों को लीड किरदारों के बीच खोने नहीं दिया है, उन्हें गढ़ने में उन्होंने मेहनत की है। साथ ही फिल्म में म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर ने कहानी को पूरी तरह से सपोर्ट किया है। साथ ही फिल्म में संयोगिता के किरदार को बखूबी प्रेजेंट किया गया है। अमूमन राजा-महराजाओं और ऐतिहासिक किरदारों को देखते हुए या गढ़ते हुए मेकर्स, महिला किरदारों के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं, इस फिल्म में ऐसा नहीं हुआ है। फिल्म में संयोगिता का नारी अधिकार के लिए आवाज उठाना और वह भी उस दौर में, इसे खूबसूरती से पर्दे पर प्रस्तुत किया गया है।
बातें जो और बेहतर होने की गुंजाईश थीं
फिल्म की कहानी अपने आप में एक महाकाव्य है, जाहिर है कि टीवी और बाकी अन्य माध्यम से भी हम इस कहानी को देख चुके हैं, ऐसे में जब बड़े पर्दे पर, बड़े बजट के साथ कोई फिल्म बनती है तो इसी फिल्मों से एक सिनेमेटिक अनुभव की उम्मीद की जाती है, इस लिहाज से फिल्म पर और मेहनत की जा सकती थी। कॉस्ट्यूम पीरियड ड्रामा के हिसाब से और बेहतर होने की गुंजाईश थी। फिल्म में थोड़े और वॉर सीन्स होते, तो फिल्म और अधिक दिलचस्प बनती। संवाद दमदार हैं, लेकिन याद रह जाते और बेहतर हो सकते थे। फिल्म यादगार बनने से कुछ कदम पीछे रह जाती है।
अभिनय
अक्षय कुमार के लिए यह पहला मौका था, जब उन्होंने किसी पीरियड फिल्म में काम किया है, उन्होंने अच्छी कोशिश की है, संवाद बोलते हुए दमदार लगे हैं। मानुषी छिल्लर की पहली फिल्म है, उस हिसाब से उन्हें पहली फिल्म में ही कठिन परीक्षा देनी पड़ी है, पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में वह और बेहतर करेंगी, यहाँ उनका प्रयास अच्छा है। फिल्म में मुझे जो सबसे अधिक अपील कर गए, वह हैं सोनू सूद, जिनके पूरे अभिनय में मुझे आत्मा नजर आई, पूरी तरह से महसूस हुआ कि वह जी रहे हैं किरदार को, आशुतोष राणा ने भी अच्छा अभिनय किया है। साक्षी तंवर के लिए खास करने को कुछ नहीं था, इस बात का अफ़सोस हुआ मुझे। संजय दत्त की भी कोशिश अच्छी रही। मानव विज ने गौरी को भूमिका में जान डाली है।
कुल मिला कर कहें, तो सिनेमेटिक अनुभव के लिहाज से फिल्म को और बेहतरीन स्तर पर प्रस्तुत किया जा सकता था, लेकिन चूँकि यह एक शौर्य और एक वीरता के शाषक की कहानी है, ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए। नए जेनेरेशन को पृथ्वीराज की शौर्यता दर्शाने के लिए दिखाई जा सकती है फिल्म।