भारत में अब भी कन्या भ्रूण हत्या का आंकड़ा दिल दहलाने वाला है। आज भी कई गर्भवती स्त्रियों को अपना गर्भपात कराना पड़ता है, क्योंकि उनकी कोख में पल रही बच्ची है, बच्चा नहीं। कुछ दिनों पहले ही नुसरत भरुचा की फिल्म ‘छोरी’ भी इसी मुद्दे को लेकर बनी फिल्म थी। इस बार रणवीर सिंह, यशराज फिल्म्स के साथ ‘जयेशभाई जोरदार ‘लेकर आये हैं, जहाँ एक ऐसे मर्द की कहानी है, जो वाकई में यह जानने के बाद कि उसकी पत्नी की कोख में पल रही बेटी है, बेटा नहीं, पूरी जद्दोजहद में लग जाता है कि हर हाल में उसे बचा कर रहेगा। नि : संदेह निर्देशक और मेकर्स ने एक बड़े सुपरस्टार के साथ इस मुद्दे को लेकर फिल्म बनाई है। अभी तक ऐसे विषयों पर, आयुष्मान खुराना ही नजर आते थे, लेकिन मैं इसे पॉजिटिव साइन समझती हूँ कि जहाँ आयुष्मान खुराना भी अपनी छवि से बाहर निकल कर, एक्शन फिल्में कर रहे हैं, रणवीर सिंह ने एक आम आदमी का रास्ता इख्तियार किया है।और वह भी एक्सपेरिमेंट करते नजर आ रहे हैं। ‘जयेशभाई जोरदार’ में रणवीर ने अपनी तरफ से पूरी मेहनत की है, लेकिन कहानी किस हद तक आकर्षित कर पाती है, यहाँ मैं विस्तार से बताने जा रही हूँ। फिल्म भ्रूण ह्त्या के साथ-साथ, बेटा -बेटी एक समान की बात करती है।
क्या है कहानी
कहानी एक काल्पनिक गुजराती गांव प्रवीनगढ़ की है, जिसके सरपंच जी (बोमन ईरानी) को पूरे गांव में लड़कियां नहीं दिखनी चाहिए, उन्हें घर का वारिस चाहिए और वारिस तो बेटा ही होता है, उनका एक बेटा है जयेशभाई (रणवीर सिंह), जो अपने पिता जैसा बिल्कुल नहीं है, वह अपनी पत्नी मुद्रा ( शालिनी पांडे) और बड़ी बेटी सिद्धि से बेहद प्यार करता है और उसे डॉक्टर ने बता दिया है कि छह बेटियों की कोख में ह्त्या करने के बाद, एक बार फिर से घर में बेटी ही आने वाली है, लेकिन इस बार जयेश तय करता है कि वह हर हाल में अपनी बेटी की जान बचाएगा। ऐसे में अपने पिता सरपंच से वह कैसे अपनी पत्नी को बचाता है, यही पूरी कहानी है। चोर-पुलिस के इस खेल में, हम रुढ़िवादी ख्यालात रखने वाले पुरुषों की खोखली सोच को देखते हैं, जो कि आज भी बिल्ली के रास्ता काटने जैसी अंधविश्वास बातों पर चल रहे हैं, अब भी बेटियों की अदला-बदली शादियों में यकीन रखते हैं कि अगर मेरी बेटी को मारा तो हम तेरी बेटी को मारेंगे, वहीं एक हरियाणा का गांव है, लाड़ोपुर जहाँ लड़कियों की इतनी भ्रूण ह्त्या हो चुकी है, अब वहां लड़कियां ही नहीं बची हैं, वहां के सरपंच ने ऐसे में कसम खाई है कि वह अब किसी बच्ची की ह्त्या नहीं होने देगा। फिल्म में दो गांवों के पुरुष की सोच के बीच के कॉन्ट्रडिक्शन के बीच औरतों की मजबूरी, उनके दर्द को समझने वाले जयेशभाई को एक शानदार पुरुष की तरह दिखाया गया है, लेकिन क्या वह लोगों की सोच बदलने में कामयाब हो पाता है, यह मैं यहाँ नहीं बताऊंगी, वरना कहानी में दिलचस्पी खो जाएगी।
बातें जो मुझे पसंद आयीं
मेकर्स एक अच्छी सोच से फिल्म लेकर आये हैं। हास्य और व्यंग्यात्मक तरीके से कन्या भ्रूण हत्या के विषय को दर्शाने की कोशिश की गई है। समान महिला अधिकारों की बात और एक उम्मीद की किरण के रूप में एक गांव में महिलाओं को समर्पित किया गया है, जहाँ निर्देशक व्यंग्यात्मक तरीके से भविष्य दर्शाने की कोशिश करते हैं कि जिस तरह से देश में भ्रूण ह्त्या हो रही है, लड़कियां बचेंगी ही नहीं। रणवीर सिंह ने अपनी इमेज से इत्तर काफी मेहनत की है इस किरदार में और उनकी मेहनत दिखती है।
बातें जो बेहतर होने की गुंजाइश थीं
कहानी में हद से ज्यादा मेलोड्रामा है और यही वजह है कि कहानी कई जगह अपने इरादों में कमजोर लगने लगती है, वर्तमान दौर में कहानी कहने के अप्रोच के साथ, कहानी के नैरेटिव में भी काफी बदलाव आये हैं और मेरे जैसे दर्शकों ने भी काफी कहानियां एक्सप्लोर कर ली हैं, ऐसे में लाउड नैरेटिव कम इम्प्रेस कर पाती है। साथ ही, फिल्म में कई रत्ना पाठक शाह जैसी कलाकारों को शामिल करने के बावजूद उनके हिस्से कुछ खास सीन्स नहीं आते हैं, तो स्क्रीन पर वह बात खलती है। ऐसी फिल्मों में मुझे उम्मीद होती है कि कोई एक दृश्य जो पूरी कहानी का सार साबित हो, वैसे सीन हों, या संवाद हो, मुझे फिल्म में वह कमी महसूस हुई। हालाँकि फिल्म टुकड़ों में अच्छी है।
अभिनय
रणवीर सिंह का होना हिंदी सिनेमा के लिए एक सौगात है, उन्होंने अपनी पहली फिल्म से लेकर अबतक जो भी किरदार निभाए हैं, उनकी मेहनत में ईमानदारी पूरी तरह नजर आती है, फिर भले ही कहानी में कमी हो या न हो, रणवीर ने इस अंडर प्ले किरदार को बखूबी निभाने की कोशिश की है। शालिनी पांडे का काम बेहतरीन है, उन्होंने संजीदगी से अपने हिस्से का अभिनय किया है। बोमन ईरानी को लेकर मुझे ऐसा लगता है कि निर्देशकों को एक्सपेरिमेंट के रास्ते खोलने चाहिए, हालाँकि वह कुछ दृश्यों में अच्छे लगे हैं, लेकिन कुछ दृश्यों में वह अपनी पुरानी भूमिकाओं में बंधे दिखे हैं। रत्ना पाठक शाह को स्क्रीन पर और अधिक मौजूदगी और दमदार दृश्य मिलने चाहिए थे।
कुल मिला कर, विषय के चयन के लिए और रणवीर सिंह की मेहनत के लिए, इस फिल्म की मैं सराहना करूंगी और ऐसे विषयों पर फिल्में बनती रहनी जरूरी हैं।