पूरे भारत में बड़े पर्दे पर, जिस तरह से एसएस राजामौली, आरआरआर के माध्यम से लोकप्रियता और सफलता के कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। उनकी फिल्म आरआरआर 1000 करोड़ क्लब में शामिल हो गई है। हाल ही में फिल्म की सक्सेस पार्टी में जब उनसे मुलाकात हुई, तो उनकी विनम्रता देख कर, मैं और अधिक हैरान हो गयी। न तो उनके चेहरे पर, कहीं भी इस बात का गुमान नजर आया, न ही उनके लिबास में वह चकाचौंध करने वाली चमक थी,जो अमूमन ऐसी फिल्मों की सफलता के बाद, कलाकारों और निर्देशकों में नजर आती है। एक से बढ़ कर एक कामयाब फिल्में देने के बावजूद, राजामौली का इतना विनम्र होना उन्हें खास बनाता है, उन्होंने दस कामयाब फिल्मों के बावजूद माना कि उन्होंने भी असफलता देखी है, इसलिए वह कभी सफलता को खुद पर हावी नहीं होने देते हैं, क्योंकि वह अपने पिता वी विजेंद्र से काफी कुछ सीखते हैं। उन्होंने पिता से क्या-क्या सीख ली है, मैं यहाँ आपको बताने जा रही हूँ।
पिताजी की फिल्मों की जर्नी की असफलता देखी है
एसएस राजामौली ने भले ही अपनी फिल्मों की शानदार सफलता देखी, लेकिन पिताजी की असफलता से भी उन्होंने काफी कुछ सीखा है।
वह कहते हैं
स्टूडेंट नंबर वन से बाहुबली 2 तक अब तक मेरी कोई भी फिल्म को दर्शकों ने नकारा नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं असफलता के मायने नहीं समझता हूँ। मुझे अच्छे से यह बात याद है कि मेरे पिता ने तेलुगू में एक फिल्म का निर्माण किया था। वे उसके निर्देशक भी थे, मैं उस वक़्त उनका मैं एसोसिएट डायरेक्टर था। इस फिल्म में मेरे पिता ने सबकुछ झोंक दिया था, लेकिन फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई। इसके बाद, हम चेन्नई जैसे शहर में थे और हमारे पास अगले डेढ़ सालों तक, कोई इनकम नहीं थी। हमने उस दौर में आर्थिक रूप से बुरा दिन देखा। लेकिन हमारे परिवार ने तब भी हिम्मत नहीं हारी थी। हम जानते थे कि धीरे-धीरे बुरे से अच्छे दिन भी आएंगे और फिर हमने अपनी मेहनत से फिर से वह मुकाम हासिल भी कर लिया।
पापा से रहा हमेशा प्रभावित
राजामौली बताते हैं कि उनके मेंटर हमेशा उनके पापा रहे हैं।
वह कहते हैं
मेरे पापा के पास, जो कमाल का ड्रामा सेन्स है, वह कमाल का है, मैं उनके आस-पास भी नहीं इस मामले में । फिल्म में ड्रामा कब आना है। कैसे आना है। हर सीन कितना लंबा होना चाहिए। यह सब उन्हें परफेक्ट तरीके से आता है और मैंने निर्देशन में आने से पहले, उनके साथ रह कर, बतौर अस्सिटेंट राइटर के तौर यह सबकुछ सीखा है, मैंने उनसे ही सीखा है कि स्टोरी बिल्ड आप कैसे करनी है। मेरी क्रिएटिविटी का आधार, वही हैं। मेरा मानना है कि हर पिता अपने बेटे को कुछ ना कुछ देता है पैसा , प्रॉपर्टी मेरे पिता ने मुझे सेंस ऑफ़ ड्रामा दिया था और यही मेरी सबसे बड़ी ताकत बना है, मेरे लिए उनकी दी यह सीख हमेशा मेरे साथ रहेगी। और हम मद्रास जैसे शहर में रह रहे थे। आप सोच सकती हैं कि आर्थिक तौर पर हमने कितने बुरे दिन देखें होंगे लेकिन परिवार के तौर पर हम एक थे। हमने हिम्मत नहीं हारी। हम जानते थे कि हमारी मेहनत से ये वक़्त भी गुज़र जाएगा और वही हुआ।कुछ साल लगें लेकिन चीज़ें ठीक हो गयी।
वाकई, मानना होगा कि राजामौली जैसे निर्देशक अपनी अगली पीढ़ी को कितना कुछ सिखाने का दमखम रखते हैं, मेरा मानना है कि ऐसे निर्देशकों से आपको सिर्फ फिल्म मेकिंग नहीं, बल्कि जिंदगी के संघर्ष के बारे में पूछना भी चाहिए और सीखना भी चाहिए कि बाहुबली जैसी फिल्में यूं ही नहीं बनती है, किस तरह से एक निर्देशक की मेहनत और संघर्ष का नतीजा होता है, जो आरआरआर जैसी फिल्मों से उन्हें और कामयाब बना देता है।