आँखें सबके पास होती हैं, नजर किसी-किसी के पास ही होती है, दिमाग सबके पास होती है, लेकिन समझ किसी-किसी के पास ही होती है, अभिषेक बच्चन, निम्रत कौर और यामी गौतम की फिल्म दसवीं उसी नजर और समझ की तलाश, शिक्षा के माध्यम से कराती हुई नजर आयी मुझे। दिनेश विजन के विजन की इस बात के लिए तारीफ़ होनी चाहिए कि उन्होंने अपना एक अलग ही जॉनर बना लिया है, जिसमें वह शिक्षा के महत्व और उसके अलग-अलग आयामों को दर्शा रहे हैं, अलग-अलग स्टोरी टेलिंग के माध्यम से। हिंदी मीडियम, अंग्रेजी मीडियम के बाद, अब दसवीं उसी में अगली कड़ी है, जहाँ इस बार कहानी एक ऐसे राजनेता की है, जो पूरी तरह से अनपढ़ भी नहीं है, अंग्रेजी में उसकी बल्ले-बल्ले है, लेकिन हिंदी में हाथ तंग है। एक घोटाले के बाद, जब उसे जेल जाना पड़ता है, तो कैसे कामचोरी से बचने के लिए वह शिक्षा का माध्यम चुनता है, लेकिन शिक्षा उनकी आँखें खोल देती है।  फिल्म में एक संवाद है कि चुनावी माहौल है, ऐसे में गंगा राम चौधरी चुनाव में शिक्षा को ही अहम चुनावी मुद्दा बनाता है, तब पुलिस सुप्रीटेंडेंट ज्योति कहती हैं कि कोई मुद्दा नहीं मिला, तो शिक्षा को ही मुद्दा बना लिया, यहाँ निर्देशक ने इतनी खूबसूरती से व्यंग्यात्मक तरीके से अपनी बात रखी है कि शिक्षा , जो अहम चुनावी मुद्दा होना चाहिए, लेकिन जब वह मुद्दा बनता है, तो मुद्दा नहीं जुमला बन जाता है, यह हमारे देश की विडबंना है कि शिक्षा अब भी अहम मुद्दा नहीं, क्योंकि शिक्षा अब भी अहम नहीं, ऐसे में तुषार तारीफ़ के काबिल हैं कि उन्होंने दसवीं के माध्यम से हास्य और व्यंग्य का इस्तेमाल कर, बेहद खूबसूरती से एक ऐसी कहानी गढ़ी हैं, जहाँ शिक्षा,सत्ता, राजनीति और प्रशासन के बीच जो खाई है, उसे अच्छे से दर्शाया है। निम्रत कौर, वाकई में फिल्म में सरप्राइज पैकेज हैं, अभिषेक बच्चन ने अपने टशन, रोब और रुआब को दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है तो यामी गौतम की सख्ती भी दिल को छू जाती है।  निर्देशक ने शिक्षा के महत्व को समझाने के लिए कुछ बेहतरीन एक्सपेरिमेंट फिल्म में किये हैं, जो फिल्म को काफी रोचक बनाते हैं, मुझे फिल्म में और भी क्या बातें पसंद आई हैं, मैं उसके बारे में विस्तार से बताने जा रही हूँ।

यहाँ देखें इस फिल्म का ट्रेलर

क्या है कहानी

कहानी एक मुख्यमंत्री गंगा राम चौधरी ( अभिषेक बच्चन ) की है, उसकी ठाठ है, लेकिन उसके हाथों से सत्ता तब जाती है, जब वह एक घोटाले में जेल जाता है। जेल जाने पर उसकी शान और शौकत में तब तक कमी नहीं आती है, जब तक कि वहां ज्योति ( यामी गौतम ) पुलिस सुप्रीटेंडेंट बन कर नहीं आ जाती हैं। ज्योति के लिए हर कैदी बराबर है और वह गंगा राम को भी कुछ नहीं समझती है।  इधर गंगा राम के जेल जाते ही उनकी पत्नी बिमला देवी ( निम्रत कौर) को राज्य की मुख्यमंत्री घोषित कर दिया जाता है, बिमला देवी अचानक से सत्ता में आती है और चुपचाप रहने वाली बिमला के अंदर, कुर्सी का खुमार चढ़ता है, उसे समझ आ जाता है कि पॉवर है तो सबकुछ है और फिर शुरू होता है पॉवर का खेल, पॉवर के खेल में फिर परिवार क्या, बिमला देवी कुर्सी पर बने रहने के लिए हर संभव प्रयास में लगी रहती है। उधर, गंगा के साथ कुछ ऐसा होता है कि वह तय करता है कि वह दसवीं पास करके रहेगा, वह इसे शुरू तो चैलेन्ज के रूप में करता है, लेकिन जैसे-जैसे वह पढ़ते जाता है, शिक्षा के महत्व से वाकिफ होता जाता है, ऐसे में सत्ता के  खेल और शिक्षा के बीच कौन जीतता है, यह फिल्म का एक रोचक पहलू है, इसे मैं नहीं बताना चाहूंगी, वरना मजा किरकिरा हो जायेगा, इसे आपको फिल्म में देखना चाहिए।

बातें जो मुझे पसंद आयीं

  • निर्देशक अपने विजन में शुरुआती दृश्यों से ही स्पष्ट है कि वह यहाँ शिक्षा और शिक्षित व्यक्ति की समझ को और जिंदगी जीने के नजरिये और चीजों को हैंडल करने के लिए नजरिये को दर्शाना चाहते हैं।
  • अगर आप रट्टू तोता हैं, तो मेरा यकीन मानिये, आपको यह फिल्म देखनी चाहिए, क्योंकि फिल्म में पढ़ाई को अपने तरीके से समझने के लिए, कई रोचक ट्रिक्स बताये गए हैं, फिल्म में हिस्ट्री से लेकर, साइंस और हिंदी विषय के ज्ञान को समझाने के लिए जो तरीके दिखाए गए हैं, वह कहानी को रोचक बनाते हैं।
  • फिल्म में गंगा राम को परीक्षा में शिक्षा पर निबंध लिखने को कहा जाता है, यहाँ निर्देशक ने मेटाफर के रूप में समझाने की कोशिश की है कि भारत ही ऐसा देश है, जहाँ शिक्षा पर निबंध तो लिख लिए जाते हैं, लेकिन उनको व्यवहारिक रूप से जिंदगी में इस्तेमाल नहीं किया जा पाता है।
  • बिमला देवी के माध्यम से एक स्ट्रांग फेमिनिस्ट ऐंगल दर्शाया गया है, जब बिमला देवी सीएम बनती हैं और गंगा राम को सीएम का हस्बैंड कहलाना, मेल ईगो को हार्ट करने जैसा होता है, निर्देशक ने चंद दृश्यों से ही दर्शाया दिया है कि महिला के हाथों सत्ता आने पर एक पुरुष को कितनी तकलीफ होती है।
  • फिल्म का क्लाइमेक्स फिल्म की असली परीक्षा होती है और निर्देशक इसमें कामयाब हुए हैं।
  • जेल की दुनिया में किस-किस तरह के कैदी आते हैं, सब मुजरिम ही नहीं होते, हालात मुजरिम कैसे बनाते हैं, इसे भी इमोशनल तरीके से दर्शाया गया है।
  • मुझे निर्देशक का यह पहलू भी अच्छा लगा कि वह हल्के -फुल्के अंदाज़ में ही सही, स्टैंड लेते हैं कई मुद्दों पर।
  • कितनी फिल्मों में हमने ऐसा देखा है, जहाँ दो महिलाओं को पॉवर के बीच एक पुरुष किरदार झूल रहा हो, इस फिल्म में इस बात को भी खूबसूरती से दर्शाया है।
  • जेल में जिस तरह से तरह-तरह के विषयों के होनहार मिल कर, गंगा की पढ़ाई में मदद करते हैं, यह जेल के प्रोग्रेसिव माहौल को भी दर्शाता है।
  • चंद दृश्यों के माध्यम से ही सही, खाप पंचायत और ऑनर किलिंग प्रथा पर भी अच्छा व्यंग्य किया गया है।
  • तुषार पूरी तरह से भाषणबाजी से बचे हैं, उन्होंने व्यंग्य और हास्य का जो रंग चुना है, वह काफी रोचक है और अधिक कनेक्ट होने वाला अंदाज़ है। सरकार, सत्ता, प्रशासन पर एक स्पष्ट और निष्पक्ष नजरिया, एकदम हास्य और सटीक अंदाज़ में रखने का हुनर वर्तमान दौर की जरूरत है और तुषार इसे बखूबी निभा पाए हैं।
  • फिल्म के गाने मजेदार हैं, सचिन जिगर का बेहतरीन म्यूजिक है, जो फिल्म के किरदारों को स्वभाव को अच्छे से रिप्रेजेंट करता है।

अभिनय

अभिषेक बच्चन ने अपने एक्सप्रेशन, संवाद अदायगी और अपने अभिनय में कहीं भी खुद को एवरेज अंक की केटेगरी में आने ही नहीं दिया है। उनके करियर की रिपोर्ट कार्ड देखें तो, इस फिल्म में अभिनय में वह पूरे डिस्टिंक्शन के साथ पास होते हैं। निम्रत वाकई में फिल्म में सरप्राइज पॅकेज हैं, मैं हैरत में हूँ कि अब तक किसी निर्देशक ने उन्हें ऐसे किरदार में इमेजिन क्यों नहीं किया था, निम्रत ने इस फिल्म में सत्ता का लालच, आत्म-सम्मान और परिवार के बीच, एक खूबसूरत कॉन्ट्रास्ट को खूबसूरती से पर्दे पर उकेरा है। यामी गौतम ने भी अपने मिजाज से अलग हट कर काम किया है, पुलिस ऑफिसर की भूमिका में उनका रुआब परदे पर मजेदार लगता है। मनु ऋषि, अरुण कुशवाह फिल्म की जान हैं, आनंद एल राय के शब्दों में कहें, तो यह दोनों फिल्म में मनोरंजन के ऐसे कंधे हैं, जिनके बिना फिल्म में कलाकारों का पास होना मुश्किल है।


बातें जो और बेहतर होने की गुंजाईश नजर आयी

ऐसी कहानियां कम लिखी या सोची जाती है,जहाँ दो महिला किरदारों की सशक्त भूमिका हो और उनके बीच एक पुरुष किरदार हो, ऐसे में दोनों ही महिलाओं को अगर और बेहतर सशक्त तरीके से दर्शाएं तो पुरुष किरदार भी और निखर कर आता है, फिल्म में यामी और निम्रत के किरदार में वह पूरी गुंजाईश है, निर्देशक ने बहुत हद तक उन्हें संवारा भी है।  लेकिन उन्हें और स्ट्रांग घटनाएं देकर और स्ट्रांग बनाया जा सकता था।

कुल मिला कर, मेरा मानना है कि दसवीं एक पारिवारिक फिल्म है और इसे पूरे परिवार के साथ देखा जाना चाहिए, ऐसी कहानियों की सराहना करनी जरूरी है, जहाँ शिक्षा के महत्व पर ही पूरी फिल्म गढ़ी जा रही है। क्राइम और थ्रिलर शोज और बारिश के बीच, दसवीं रोचक रूप से आपका मनोरंजन करती है।  फिल्म जियो सिनेमा और नेटफ्लिक्स दोनों पर ही एक साथ स्ट्रीम हो चुकी है।

फिल्म : दसवीं

कलाकार : अभिषेक बच्चन, यामी गौतम और निम्रत कौर

निर्देशक : तुषार जलोटा

चैनल : जियो सिनेमा और नेटफ्लिक्स

मेरी रेटिंग 5 में से 3 स्टार