संस्कृति और सभ्यता के नाम पर, दो प्यार करने वालों को परेशान करने वाले, हमेशा ही मोरैलिटी की बात करते हैं, लेकिन मोरल पुलिसिंग के नाम पर युवाओं के साथ हो रही धोखाधड़ी और बदतमीजी करने के कई केसेज, हमेशा ही अख़बारों में सुनने को मिलते हैं, एक ऐसे ही महत्वपूर्ण विषय पर फिल्म लेकर आये हैं, निर्माता नीरज पांडे ऑपरेशन रोमियो । फिल्म मलयालम फिल्म इश्क़-नॉट अ लव स्टोरी का हिंदी रीमेक है, फिल्म में शरद केलकर नए अवतार में हैं, तो भूमिका चावला का भी दमदार किरदार है। नए कलाकार सिद्धांत गुप्ता और वेदिका पिंटो ने कोशिश अच्छी की है। मुझे फिल्म का कांस्पेट और ट्रेलर बेहद पसंद आया था, फिल्म कैसी लगी है, उसके बारे में मैं यहाँ विस्तार से बता रही हूँ।
क्या है कहानी
कहानी मुंबई के एक प्रेमी युगल की कहानी है, जब दो युवा दिलों की पूरी दुनिया ही बदल जाती है। आदित्य ( सिद्धांत गुप्ता ) और नेहा ( वेदिका पिंटो) एक दूसरे से प्यार करते हैं। नेहा का जन्मदिन है, दोनों इसे सेलिब्रेट करने मुंबई के टाउन इलाके में जाते हैं। दोनों एक कार में ही होते हैं और अपनी रूमानी दुनिया में खोये रहते हैं कि तभी दो पुलिस वाले आकर डराना और धमकाना शुरू कर देते हैं, इसके बाद एक घिनौना खेल शुरू होता है। संस्कृति-सभ्यता के नाम पर, परिवार वालों को उनका सच बता देने के नाम पर, दोनों पुलिस वाले इन युवा कपल को खूब परेशान करते हैं। इस पुलिस वाले को सिर्फ पैसा नहीं चाहिए और भी बहुत कुछ चाहिए होता है, ऐसे में कहानी फर्स्ट हाफ से खींचती हुई, सेकेण्ड हाफ पर पहुंचती है और पूरी तरह से रिवेंज ड्रामा में बदल जाती है। आदित्य किस तरह से नेहा के साथ हुई बदसलूकी का बदला लेता है और क्या-क्या सच सामने आते हैं, यह मैं यहाँ नहीं बताऊंगी, वरना फिल्म का सस्पेंस खत्म हो जायेगा।
बातें जो मुझे पसंद आयीं
फिल्म का कांस्पेट और कलाकार सभी बहुत ही परफेक्ट हैं। ऐसे विषयों को चुन कर, उनपर फिल्में बनानी जरूरी है। फिल्म का अंत इस फिल्म की जान है और उसके लिए मैं तो फिल्म की मुख्य अदाकारा को ढेर सारा प्यार और शाबाशी दूँगी। निर्देशक ने बड़ी ही खूबसूरती से पुरुष समाज की सोच पर वार किया है कि उनकी नजर में मर्दानगी का मतलब क्या होता है और मुख्य अभिनेत्री ने उन्हें बस एक ही सीन से अच्छा जवाब दिया है। पूरी फिल्म में वह स्ट्रांग पहलू है।
बातें जो बेहतर होने की गुंजाईश थी
मेरा मानना है कि जब कोई ऐसी कहानी, जो कि काफी सीरियस मुद्दे पर है और उस पर क़ानून से सम्बंधित नियम-कानून भी हैं, तो निर्देशक को उसे भी कहानी में दिखाया जाना चाहिए था। फिल्म में इसकी पूरी गुंजाइश थी। फिल्म मोरल पुलिसिंग के मुद्दे को कम, रिवेंज ड्रामा की तरफ रुख अधिक कर जाती है। फिल्म में बच्चे के सामने जो वायलेंस सीन चल रहे थे, वह थोड़े डिस्टर्ब करते हैं। जब ऐसी कहानी होती है, तो मेरी जैसी दर्शक जल्द से जल्द कहानी के मुख्य बिंदू पर आ जाना चाहती है, लेकिन निर्देशक ने इसे भी बिल्ड अप करने में काफी समय फर्स्ट हाफ में बर्बाद कर दिया है। मुझे फिल्म में मेकर्स कन्फ्यूज नजर आये, वह फिल्म को रिवेंज ड्रामा बनाना चाहते थे या मेसेज देना चाहते थे? इस वजह से फिल्म कन्फ्यूज हो गई है। एक अच्छी सोच के बावजूद, अच्छे कलाकारों के साथ कहानी में काफी बेहतर होने की गुंजाइश थी। लेकिन फिल्म आधी-अधूरी रह गई है।
अभिनय
इस फिल्म की खासियत मुझे यही नजर आई कि सभी कलाकारों का काम बेहतर है। शरद केलकर को इस फिल्म में देखने के बाद, वाकई में उनसे नफरत हो जाएगी। भूमिका चावला ने कम दृश्यों में ही सही सार्थक काम किया है। नए कलाकार सिद्धांत गुप्ता ने अच्छी कोशिश की है, आगे वह और बेहतर करेंगे गुंजाइश है। वेदिका पिंटो,कहानी में पूरी तरह से शाइन करती हैं, उनके किरदार में काफी वेरिएशन और लेयर्स हैं, उन्होंने काफी अच्छे से इसे निभाया है।
कुल मिला कर, मैंने फिल्म से जिस तरह की उम्मीदें लगा ली थीं, फिल्म वैसी नहीं है, लेकिन हाँ, ऐसे विषयों को चुन कर फिल्में बननी चाहिए और इसके लिए मेकर्स की तारीफ होनी ही चाहिए।