हिंदी फिल्मों में रॉ एजेंट को लेकर ढेर सारी फिल्में बनती रही हैं, फिर वह चाहे सलमान खान की टाइगर फ्रेंचाइजी हो या फिर जॉन अब्राहम की फिल्में। ऐसे में मूल रूप से तमिल भाषा में बनी बीस्ट, जिसे हिंदी में रॉ (बीस्ट) के रूप में रिलीज किया गया है, मेरे ख्याल से इस जॉनर में संघर्ष करती है, इसकी वजह साफ़ यह है कि ऐसी कई कहानियां हिंदी फिल्मों में पहले भी देखी जा चुकी हैं, शायद यही वजह है कि तमिल के सुपर स्टार थलापति कहलाये जाने वाले विजय के होने के बावजूद, कहानी बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती है। दरअसल, आतंकवाद के जिस मुद्दे को फिल्म में उठाने की कोशिश की गई है, मेरी समझ से कई फिल्मों में ऐसा पहले किया जा चुका है। साथ ही निर्देशक ने आतंकवाद के मुद्दे को हास्य अंदाज़, यानी सिचुएशनल कॉमेडी के रूप में दर्शाने की जो कोशिश की है, मेरे लिहाज से वहीं फिल्म की कमजोरी भी बन जाती है। मैं ऐसा क्यों कह रही हूँ, यहाँ मैं विस्तार से बताने जा रही हूँ।
क्या है कहानी
कहानी वीर राघवन ( विजय) की है, वीर एक रॉ एजेंट है। वह भारत सरकार द्वारा पीओके कश्मीर में भेजा गया है, वह वहां पर एक मिशन पर है, लेकिन उससे बच्चों से बेहद प्यार है, लेकिन अपने मिशन को पूरा करने में उससे एक चूक होती है और उसके मिशन के दौरान ही एक बच्ची की मृत्यु हो जाती है, इसके बाद वीर भारत सरकार से नाराज है। उसे लगता है कि उसका इस्तेमाल हुआ है, वह भारत लौट आता है, लेकिन सोल्जर के रूप में काम करने को तैयार नहीं है। लेकिन सोल्जर तो हमेशा सोल्जर ही होता है, चेन्नई के एक मॉल को आतंकवादी हाई जैक कर लेते हैं। वीर वहां अपनी गर्लफ्रेंड ( पूजा हेगड़े ) के साथ होता है, अब आगे क्या होता है, क्या विजय के अंदर का सोल्जर जागता है, वह क्या मिशन पर वापस आता है, यह सब अगर मैंने यहाँ बता दिया तो फिल्म का रोमांच खत्म हो जायेगा। इस पूरे क्रम में प्रशासन का क्या रवैया होता है, पॉलिटिक्स किस तरह से करवटें है, यह सब फिल्म देखने के बाद ही आप जान पाएंगे।
यहाँ देखें फिल्म का ट्रेलर
बातें जो मुझे पसंद आयीं
- प्रशासन, सरकार, पुलिस यह सब कैसे चुनाव के दौरान काम करते हैं और मतलब साधते हैं, उसे इस फिल्म में अच्छी तरह से दर्शाया गया है।
- टुकड़ों में विजय का एक्शन अच्छा लगता है।
- कुछ सहयोगी कलाकारों की वजह से कहानी में थोड़ा रोमांच लाने की भी अच्छी कोशिश है।
- फिल्म में दो पार्टी सांग हैं और वह एवरग्रीन सांग हैं, आप हर मूड में उसे गा भी सकते हैं और उस पर खूब डांस भी कर सकते हैं , फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है।
अभिनय
विजय एक शानदार एक्शन हीरो हैं, इस फिल्म में भी सिर्फ और सिर्फ विजय ही हैं, लेकिन विजय के एक्शन में नयापन जोड़ने की कोशिश निर्देशक ने बहुत नहीं की है, मेरा तो मानना है कि जब विजय जैसे कलाकार, साथ हों और उनके फैंस उनके एक्शन की काबिलियत से वाकिफ हों, तो ऐसे में विजय के लिए कुछ नए अंदाज के सीन्स रचने जरूरी थे। पूजा हेगड़े एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री लगती हैं मुझे और मुझे लगता है कि अब वह जिस भी फिल्म का हिस्सा बनें, उनके निर्देशकों के जेहन में भी यह बात आये, तो पूजा के लिए ग्रो करने का मौका बेहतर होता जाता, उनके किरदार को विस्तार देने की और विभिन्नता देने की फिल्म में पूरी कोशिश थी, उन्हें और भी अच्छी तरह से निखारा जा सकता था। योगी बाबू में भी एक शानदार कलाकार छुपा बैठा है, ऐसे में उन्हें फिल्म में थोड़े अच्छे किरदार मिलते और विस्तार मिलता, तो शायद वह खुद को और अच्छी तरह साबित कर पाते।
बातें जो बेहतर होने की गुंजाइश हो सकती थीं
- विजय के फैंस, उनका बेसब्री से इंतजार करते हैं, ऐसे में विजय के लिए सिम्पल कहानी में, थोड़ा अलग एक्शन डिजाइन करना, इस फिल्म को उम्मीदों पर खरा उतारता।
- फिल्म की कहानी पर, निर्देशक को और बेहतर तरीके से काम करने की पूरी गुंजाइश नजर आई है, रॉ एजेंट की फिल्मों में दर्शक, थोड़े टर्न और ट्विस्ट की उम्मीदें करते हैं, लेकिन इस फिल्म में उसकी कमी नजर आई है।
- विजय की फिल्म है ये, यह बात स्पष्ट है, लेकिन सहयोगी कलाकारों के किरदारों को भी निखारा जाता, तो कहानी शायद और निखरती, खासतौर से पूजा हेगड़े के किरदार में काफी क्षमता थी, लेकिन वह सही जगह पर इस्तेमाल नहीं हो पायी।
- लॉजिकल फिल्म नहीं थी, मानती हूँ, लेकिन वन मैन आर्मी साबित करने के लिए, फिल्म में कई बचकाने तरीके चुने गए हैं, इतने सार्थक एक्टर के साथ, निर्देशक उन चीजों से बच सकते थे।
कुल मिला कर रॉ (बीस्ट), विजय के स्टारडम को एक लेवल ऊपर नहीं ले जाती है, हालाँकि उनके कुछ एक्शन दृश्यों पर उनके फैंस खुश हो जाने वाले हैं, ऐसा मुझे लगता है।