कभी-कभी अफसोस होता है कि बड़ी फिल्मों की आंधी में, कई बार छोटी फिल्में खामोश हो जाती हैं, जबकि ऐसी कुछ फिल्में होती हैं, जिन्हें देख कर, आपको फिल्मकार की शिद्दत और मेहनत नजर आती है, ऐसी ही एक फिल्म मैंने कौन प्रवीण ताम्बे देखी, फिल्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार यानि ओटीटी पर रिलीज हुई है। यह कहानी एक ऐसे इंसान की कहानी है, जो सपने देखना नहीं छोड़ता है। हाल ही में मैंने एक अवार्ड शो के दौरान कियारा आडवाणी की स्टेटमेंट को सुना कि जिंदगी में जब आप अपने सपने को जीते हो, तो सबसे ज्यादा खुश रहते हो, शाह रुख खान भी हमेशा कहते आये हैं कि हमेशा अपनी मन की सुनो और आज जब मैंने प्रवीण तांबे की कहानी देख ली है, तो अब मुझे वाकई में इन बातों पर विश्वास हो गया है कि उम्र कोई भी हो, अगर आपमें जज्बा है, तो सपना देखना मत छोड़िये। इस फिल्म के मेकर्स की तारीफ़ होनी चाहिए कि उन्होंने इस प्रेरणादायी कहानी को दर्शाने की कोशिश की। कौन प्रवीण ताम्बे एक ऐसे इंसान की कहानी है, जिसने क्रिकेट खेलने का सपना कम उम्र से देखना शुरू किया, लेकिन पहला मौका उन्हें 41 साल की उम्र में मिलता है, जब क्रिकेट की दुनिया से खिलाड़ियों के अलविदा कहने का समय आ गया होता है। श्रेयस तलपड़े ने इस किरदार को बखूबी जिया है और प्रवीण ताम्बे को एक बार ही सही, उन्होंने चेहरे पर स्माइल लाने का मौका दे दिया है। यह फिल्म हर उस निराश व्यक्ति को देखनी चाहिए, जो मान लेते हैं कि जिंदगी में कुछ नहीं हो सकता है या फिर एक बार हारने के बाद या रिजेक्ट होने के बाद, वह फिर से खड़ा होना भूल जाते हैं या प्रयास नहीं करना चाहते हैं, जिंदगी से शिकायती लहजे में बातें करने वाले इंसानों को भी एक बार इस फिल्म को देखना चाहिए और सीखना चाहिए कि जिंदगी में शिकायत नहीं एक्शन से बात बनती है, ऐसी ही कई प्रेरणा से भरपूर बातें फिल्म दर्शाती हैं। यह फिल्म मुझे क्यों अपील कर गई, मैं इसके बारे में विस्तार से बताना चाहूंगी।
क्या है कहानी
कौन प्रवीण ताम्बे, मुंबई शहर के एक निम्न मिडिल क्लास परिवार की कहानी है। प्रवीण (श्रेयस तलपड़े), जिसका बचपन से सपना है कि वह चैपियनशिप रणजी ट्रॉफी खेलना चाहता है। वह मध्यम तेज गति का गेंदबाज तो है ही, वह बढ़िया बैटिंग भी कर लेता है। शुरुआती दौर में क्रिकेट उस पर इस कदर हावी रहता है कि वह भूल जाता है कि उसके परिवार के लिए भी उसकी कुछ जिम्मेदारी है। हालाँकि हर परिवार में एक शख्स ऐसा जरूर होता है, जो आपको इंस्पायर करे, ऐसे में प्रवीण के बड़े भाई भी उसे प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन हर मध्यम वर्गीय परिवार की तरह, प्रवीण की माँ की चिंताएं हैं कि प्रवीण क्रिकेट खेलता रहेगा, तो घर कौन देखेगा। उसे प्रवीण की नौकरी, शादी यही सब चाहिए, प्रवीण भी दबाव में शादी और बच्चा कर लेता है, नौकरी भी लग जाती है, लेकिन मन से क्रिकेट नहीं जाता है। वह लेकिन आम टूर्नामेंट तक ही टिका रहता है और धीरे-धीरे उम्र 40 का आंकड़ा पार कर रही है। लेकिन फिर उसकी जिंदगी में कैसे राजस्थान रॉयल्स की टीम का आईपीएल में हिस्सा बनने का सपना पूरा होता है, यह देखना फिल्म में काफी दिलचस्प है। फिल्म में दिलचस्प टर्निंग पॉइंट है।
बातें जो मुझे बेहद पसंद आयीं
- फिल्म के मेकर्स ने कहानी कहने के अंदाज़ में अधिक मेलोड्रामा नहीं ठूसा है, उन्होंने कहानी को रियलिस्टिक अप्रोच दिया है, फिर चाहे वह नैरेशन हो या कहानी का ट्रीटमेंट, या फिर परिवेश या लोकेशन, आप फिल्म देखते हुए महसूस करते हैं कि एक आम इंसान की कहानी चल रही है।
- बगैर कोई अधिक मैच खेले, किसी इंटरनेशनल मैच का हिस्सा बनने के लिए एक इंसान में कितना जज्बा चाहिए, यह देखना है तो प्रवीण ताम्बे की यह कहानी देखनी चाहिए।
- सपनों के साथ किस तरह संघर्ष का साथ चलता रहता है, इसे बहुत खूबसूरती से यह फिल्म दर्शाती है।
- एक खिलाड़ी की जिंदगी में कितने उतार-चढ़ाव आते हैं, यह भी फिल्म दर्शाती है।
- कई दृश्यों में श्रेयस का अभिनय इमोशनल कर जाता है।
- आशीष विद्यार्थी का फिल्म में एक संवाद है कि लाइफ हो या मैच, ऑल यू नीड इस वन गुड ओवर और वह आपकी जिंदगी में आये तो आपको कैसे परफॉर्म करना चाहिए, इसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है।
- जीरो से कैसे ऊपर उठ कर आसमान हासिल किया जा सकता है, यह फिल्म वह भी मार्गदर्शन करती है।
- किसी खिलाड़ी के बनने बिगड़ने में मीडिया और क्रिकेट संस्थानों का कितना बड़ा हाथ होता है, वह इस कहानी में पोलिटिकली करेक्ट हुए बगैर दिखाया गया
- हाल के दिनों में क्रिकेट पर बनी कहानियों में यह कहानी अलग है और सच्ची है, ईमानदारी स्पष्ट रूप से फिल्म में नजर आती है।
अभिनय
इस फिल्म के वन मैन आर्मी हैं श्रेयस तलपड़े, उनके अभिनय को देख कर, मुझे हमेशा ही लगता है कि अभी उन्हें और आजमाना निर्देशकों के लिए बाकी है, वह एक उम्दा कलाकार हैं और उन्हें सिर्फ कॉमेडी में टाइपकास्ट नहीं किया जाना चाहिए, प्रवीण ताम्बे जैसे किरदार में वह जिस तरह से जान डालते हैं, शारीरिक मेहनत से लेकर, भाव-एक्सप्रेशन, दर्द,फ्रस्टेशन, पारिवारिक इंसान का दबाव, न जाने फिल्म में कितने लेयर्स हैं और सबमें उन्होंने अनूठा काम किया है, इकबाल के बाद, यह फिल्म भी उनके करियर में मिसाल बनेगी। फिल्म के लिए उन्होंने वजन भी बढ़ाया है और फिर घटाया भी है, यह बात भी उल्लेखनीय है। अंजलि पाटिल ने भी अपना किरदार सशक्त रूप से जिया है, आशीष विद्यार्थी कोच के रूप में जंचे हैं। पत्रकार के रूप में परमब्रत चटर्जी आकर्षित करते हैं।
वाकई में, ऐसी सच्ची कहानियों का बनते रहना, बेहद जरूरी है हमारी फिल्म इंडस्ट्री में, ताकि ऐसे नामों को पहचान मिले और ऐसी कहानियां इंस्पायर करें, मैं तो हर सपने देखने और जज्बे और जूनून से भरपूर लोगों को जरूर कहूँगी कि यह फिल्म देखें और ऐसे इंसान को सलाम करें, जिसने अपनी जिद्द से इसे पूरा किया और आप भी अपनी जिंदगी में जोश से भर कर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ें, मैं तो फिल्म देख कर पूरी तरह जोश से भरपूर हो चुकी हूँ।