हिंदी सिनेमा के ऐसे कई होनहार कलाकार हैं, जिन्होंने छोटी उम्र के साथ ही फिल्मों में कदम रख लिया था। कुणाल खेमू भी ऐसे ही कलाकारों में से एक रहे हैं, जो काफी छोटी उम्र से अभिनय कर रहे हैं। मुझे कुणाल खेमू के अभिनय की सबसे खास बात यह लगती है कि उन्होंने खुद को बतौर अभिनेता, कभी भी टाइपकास्ट नहीं होने दिया है, वह इंटेंस किरदारों में भी वैसे ही जमते हैं, जैसे किसी और किरदार में। ऐसे में इन दिनों वह इन दिनों अभय सीजन 3 को लेकर चर्चे में हैं, उन्होंने इस शो के बारे में और अपने करियर को लेकर कुछ दिलचस्प बातें की हैं, जिसके अंश मैं यहाँ शेयर कर रही हूँ।
अभय के पहले सीजन का किरदार रहा हावी
अपने लोकप्रिय सीरीज अभय के बारे में कुणाल खेमू कहते हैं कि जब इसका पहला सीजन आया था, तो उन पर इसका असर काफी हो गया था, क्योंकि किरदार काफी इंटेंस था।
वह कहते हैं
पहला सीजन एकदम वास्तविक घटनाओं पर आधारित था, तो मैं इसमें काफी इंटेंस चला गया था, काफी दिनों तक मुझे इससे निकलने में वक़्त लग गया था, मैं उन परिवारों के बारे में काफी सोचने लगता था, जो इससे गुजरे हैं।
हालाँकि यह सीरीज उन्हें ऑफर हुई थी, तो आश्चर्य भी हुआ था, ऐसा क्यों हुआ था, वह खुद बता रहे हैं।
वह कहते हैं
मुझे जब यह सीरीज ऑफर हुई, तो मुझे भी हैरानी हुई, क्योंकि उस वक़्त ज्यादातर मेरी कॉमेडी फिल्में ही आ रही थीं, ऐसे में मैंने भी यह मौका हाथ से जाने नहीं दिया और इस सीरीज के लिए हाँ कह दिया, अच्छा लगता है की अब इसका तीसरा सीजन आ चुका है और दर्शक इसे प्यार दे रहे हैं। सीजन वन से सीजन तीन में अभिनय करना कठिन है, क्योंकि यहाँ आपको खुद को और अच्छी तरह से प्रूव करना है, दर्शकों को दो सीजन के बाद से आपसे उम्मीदें हो जाती हैं, इसलिए। वैसे मुझे कॉमिक किरदारों को निभाने में उतना ही मजा आता है, जितना इंटेंस किरदारों को निभाने में।
मल्टी हीरो प्रोजेक्ट से परेशानी नहीं
कुणाल इस बात को लेकर स्पष्ट हैं और कहते हैं कि उन्हें मल्टी हीरो फिल्में करने में कोई परेशानी कभी नहीं रही है।
वह कहते हैं
मैं कभी फिल्मों को या मेरे किसी भी प्रोजेक्ट को इस तरीके से तो देखता ही नहीं हूँ, मेरे लिए किरदार का मतलब कहानी है। ऐसा मैं सोचता तो न तो गोलमाल सीरीज का हिस्सा बन पाटा, न ही कलंक जैसी फिल्म से जुड़ पाता, मैं इन बातों को खास तवज्जो नहीं देता हूँ, मुझे क्या करने का मौका मिल रहा है, वह मेरे लिए मायने रखता है। मुझे कलंक और अभय जैसे प्रोजेक्ट्स करने में उतना ही मजा आता है, जितना एन्जॉय मैं गोलमाल जैसी कॉमेडी फिल्में करते हुए करता हूँ।
कुणाल का मानना है कि ओटीटी की दुनिया में काफी एक्सपेरिमेंट्स हुए हैं, यह अच्छी बात है, लेकिन क्वालिटी को भी आगे चल कर ध्यान में रखना जरूरी है, क्योंकि अधिक शोज बन रहे हैं तो क्वालिटी के साथ कहीं भी कॉम्प्रमाइज नहीं होने चाहिए।
वाकई, कुणाल मैं तो हमेशा ही आपके काम की मुरीद रही हूँ, फिर आपने कभी कॉमेडी से खूब हंसाया हो या फिर कलंक और जख्म जैसी फिल्मों से इंटेंस कर दिया हो, आने वाले समय में मुझे पूरी उम्मीद है कि आप और भी नए और बेहतर प्रोजेक्ट्स से हमें हैरान करेंगे।