मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के सुपर स्टार माने जाने वाले, दुलकर सलमान मेरे लिहाज से इतने एक्सपेरिमेंट अपने किरदार के साथ कर रहे हैं, हाल के दौर में मैंने साउथ इंडियन फ़िल्मी स्टार्स को कम देखा है करते हुए। दुलकर कभी रोमांटिक अंदाज़ में नजर आते हैं, तो कभी थ्रिलर फिल्मों में भी वह सशख्त किरदार निभाने लगे हैं। ऐसे में हाल ही में उनकी फिल्म ‘सैल्यूट’ सोनी लिव ओटीटी पर रिलीज हुई तो, फिल्म के ट्रेलर ने ही मुझे काफी आकर्षित किया और फिर मैंने फिल्म देखी। फिल्म में वह एक पुलिस ऑफिसर की भूमिका में हैं, लेकिन मैं यहाँ ‘सैल्यूट’ पर बात इसलिए करने जा रही हूँ, क्योंकि मुझे यह फिल्म आम कॉप फिल्मों से एकदम अलग लगी। ऐसा नहीं है कि साउथ इंडियन फिल्मों में रियलिस्टिक कॉप पर आधारित फिल्में नहीं बनी हैं, लेकिन स्टार्स को लेकर अमूमन कोशिश होती है कि उसमें फैंसी कार वाले एक्शन, मार-धार और लार्जर देन लाइफ, सबकुछ दिखाया जाये। ऐसे में इन सबसे जुदा दुलकर की ‘सैल्यूट’ क्यों अलग है, और मेरे जैसे कॉप फिल्मों को पसंद करने वाले लोगों को क्यों देखनी चाहिए , मैं यहाँ इसके पांच कारण बताने जा रही हूँ।
क्या है कहानी
तो सबसे पहले मैं मोटे तौर पर आपको बता दूँ कि कहानी क्या है। कहानी अरविन्द करुणाकरण (दुलकर सलमान) की है, जो अपने ही डिपार्टमेंट के पुलिस ऑफिसर के बीच, चूहे और बिल्ली के गेम में फंस जाता है। सिस्टम में रह कर, सिस्टम से लड़ना कितना कठिन है, यह इस फिल्म में खूबसूरती से दिखाया गया है। फिल्म में कई मर्डर और उसके इन्वेस्टिगेशन पर बात कही गई है, किस तरह से अरविन्द को, अपने सीनियर्स का निशाना बनना पड़ता है और किस तरह वह इन सबसे निकल कर, सच को सामने ला पाता है, सच कहना कितना कठिन है, कहानी पूरी तरह से इसी के इर्द-गिर्द है।
नहीं है टिपिकल कॉप फिल्म
‘सैल्यूट’ की जो बात मुझे पसंद आई कि यह टाइपकास्ट फिल्म नहीं है, इस ड्रामा में हीरो की कोई हीरोइक एंट्री नहीं होती है। न ही वह कोई भारी-भरकम कार को हवा में उड़ाते हुए या दुश्मन की कार के टुकड़े करते हुए नजर आता है, न ही बैकग्राउंड में कोई जोर-जोर से आवाजें आती हैं। इन सबकी जगह इस फिल्म की कोशिश है कि इसमें असलियत दिखाई गई है कि एक सच्चे पुलिस ऑफिसर को किस तरह से अपने सुपीरियर्स का सामना करना पड़ता है।
कानून सिर्फ सबूत मानता है
वैसे तो यह हमने कई फिल्मों में देखा है कि कानून केवल सबूतों को ही मानता है, इस फिल्म में भी निर्देशक ने जिस तरह से सबूत को ढूंढने और उसके आधार पर मर्डर को साबित करने के जो दिलचस्प तरीके बताएं और वे जिस तरह से हमारी आँखों के सामने आये हैं, वह कमाल के हैं। यह हमें पूरी तरह से कहानी से बांधें रखते हैं। अंत तक यह पता लगा पाना कठिन होता है कि आखिर असली मुजरिम कौन है।
दुलकर का शानदार परफॉर्मेंस
जो क्रिटिक लगातार दुलकर के बारे में यह राय रखते हैं और लिखते आये हैं कि वह केवल रोमांटिक फिल्मों में ही कमाल कर पाते हैं या स्लाइस ऑफ़ लाइफ फिल्मों में ही, उन्हें एक बार यह फिल्म देखनी चाहिए, फिल्म में उनके संवाद बेहद कम हैं, लेकिन उन्होंने अपनी आँखों से जैसे अभिनय किया है, उनकी आँखों में एक सब इंस्पेक्टर की लाचारी जो नजर आती है, वह कमाल की है।
रियलिस्टिक अप्रोच
निर्देशक ने पूरी तरह से कहानी का जो मजमा तैयार किया है, उसमें रियलिस्टिक अप्रोच भी है और सही लॉजिक भी है। ऐसा नहीं है कि जो भी घटनाएं होती हैं, वह केवल बिना किसी लॉजिक के सामने आती हैं, हर घटना की एक वजह स्पष्ट की गई है, इसलिए यह फिल्म और रोचक बन जाती है। किसी केस पर सही तरीके से कैसे इन्वेस्टिगेशन की जाती है, इस फिल्म में इसे बखूबी दर्शाया गया है। इसमें कोई भी बनावटीपन नहीं है, इसलिए मेरे जैसे दर्शक इस कहानी से जुड़ाव महसूस करेंगे।
कई जरूरी सवाल पुलिस सिस्टम पर
अब तक कई ऐसी फिल्में बन चुकी हैं, जो पुलिस प्रशासन की खामियों को बताती हैं, इस फिल्म में आपके सामने कुछ ऐसे सच सामने आएंगे, जिसे देख कर आप हैरान होने वाले हैं। पुलिस डिपार्टमेंट में एक ईमानदार पुलिस को किस तरह उनके ही कूलिग परेशान करते हैं और फंसाते जाते हैं, इसे फिल्म में बेहद बारीकी से समझाया गया है।
वाकई, मेरा मानना है कि कॉप फिल्म पर हंसी मजाक वाली फिल्में बनाने वाले निर्देशकों को सैल्यूट जैसी फिल्मों से थोड़ी प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि कुछ सीरियस फिल्में भी आ सकें। वैसे ‘सरफ़रोश,’ मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक रही है, जिसमें काफी गंभीरता से पुलिस के काम को दर्शाया गया है।