किसी निर्देशक ने जब यह सोचा होगा कि वह विद्या बालन और शेफाली शाह के साथ एक फिल्म बनाने जा रहे हैं, तो मैं उस कल्पना की ही दाद देती हूँ कि उन्हें कहानी लिखते हुए, कितना मजा आ रहा होगा कि उनकी लिखी कहानी पर यह दो दिग्गज अभिनेत्रियां काम करेंगी। फिल्म ‘जलसा’ को लेकर जबसे चर्चाएं शुरू हुईं कि इस फिल्म में विद्या बालन और शेफाली साथ स्क्रीन शेयर करने जा रही हैं, मेरे उत्साह का तो उस वक़्त से ही ठिकाना नहीं रहा था, क्योंकि दोनों ही अपने फन में माहिर कलाकार हैं, आप उन्हें भारी भरकम संवाद दे दें या फिर सिर्फ एक्सप्रेशन की भाषा बोलने को कहें, दोनों ही स्थिति में कमाल कर जाती हैं विद्या और शेफाली, ऐसे में मैं तो इस बात से बेहद खुश और संतुष्ट हूँ कि बतौर सिने प्रेमी मैं इस फिल्म को देख कर निराश नहीं हुई, जो उम्मीद लेकर गई थी फिल्म देखने, उससे एकदम अलहदा ही पाया दोनों अभिनेत्रियों को। इस फिल्म की सबसे खास बात यह है कि यह फिल्म साइलेंस में बातें करती हैं। इस कहानी में एक माँ का इमोशन, एक इंसान, जो कि ईमानदार रहने की कोशिश कर रही है, लेकिन एक घटना से वह लगातार हर दिन अपने अंतर्द्वंद से जूझ रही होती है, एक दूसरी महिला, जिसके पास कोई सुख चैन नहीं है, लेकिन फिर भी वह अपनी छोटी सी दुनिया में खुश है, इंसानों के कई ऐसे छोटे-छोटे इमोशन को फिल्म में खूबसूरती से पिरोया गया है। इस फिल्म की खासियत यह भी है कि यहाँ किरदारों को कोई महान बनाने की कोशिश नहीं है, न ही किसी को जबरन हीरोइक बनाया गया है। इस फिल्म की सिम्पलिसिटी ही इस कहानी को एक अलग स्तर पर ले जाती है, साथ ही नैरेटिव का जो अंदाज़ सुरेश ने चुना है, वह उन्हें मौजूदा निर्देशकों से अलहदा बना देता है। मैं यहाँ आपको बताने जा रही हूँ कि मैंने ‘जलसा ‘देखते हुए क्या महसूस किया। किसी इंसान के लिए किसी गलती को स्वीकार कर, सच का साथ देना कितना कठिन है, यह इस फिल्म में कई परतों को खोलते हुए दर्शाया गया है।
क्या है कहानी
इस फिल्म की कहानी दो महिलाओं की जिंदगी पर केंद्रित है। एक महिला है माया मेनन (विद्या बालन), जो कि ईमानदार पत्रकार है और दो टूक सवाल पूछने में वह पीछे नहीं रहती है, फिर चाहे सामने जस्टिस हों या कोई और बड़ी हस्ती। उसका एक बेटा है,जिसे cerebral palsy है। माया की दुनिया उसकी कहानियों में है, लेकिन जो समय बचता है, वह अपनी माँ ( रोहिणी हट्टंगड़ी) और अपने बेटे को देती है। माया के घर में रुखसाना( शेफाली शाह) काम करती है, वह माया के बेटे का पूरा ख्याल रखती है और उनका बेटा भी रुखसाना को काफी पसंद करता है। सबकुछ ठीक चल रहा होता है कि एक दिन अचानक एक हादसा हो जाता है और माया की पूरी जिंदगी बदल जाती है। रुकसाना, किस तरह माया की पूरी जिंदगी को प्रभावित करती है, क्यों ऐसा होता है, क्या नफरत प्यार पर हावी हो जाती है, क्या हर इंसान के अंदर एक लालची इंसान भी छुपा होता है, जो सिर्फ अपने बारे में सोचता है, निर्देशक ने बेहद खूबसूरती से, वास्तविकता के नजदीक रह कर अपनी कहानी कही है। यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। लेकिन मैं एक बात और कहना चाहूंगी कि इस कहानी को देखने के लिए आपको धैर्य रखना होगा, तभी आप इस कहानी की तह को समझ पाएंगे।
बातें जो मुझे अच्छी लगी
- निर्देशक सुरेश, अन्य निर्देशकों की तरह इस बात से नहीं घबराये हैं कि कहानी में पहले ही उन्होंने सस्पेंस खोल दिया है, चूँकि थ्रिलर होते हुए भी उन्हें इस कहानी में ह्यूमन ऐंगल से भी कहानी कहनी थी। सो, उन्होंने बेहद खूबसूरती से अपनी बात रखी है।
- इस कहानी के माध्यम से निर्देशक पुलिस प्रशासन, मीडिया , नेता और ऐसे सिस्टम से जुड़े कई लोगों पर कटाक्ष करते हैं, लेकिन उसे उन्होंने लाउड होकर नहीं, बल्कि एकदम सटल अंदाज़ में दर्शाया है।
- किस तरह खबरें दबाई जाती है, जब मामला हाई प्रोफ़ाइल का हो जाता है, फिर चाहे वह एक्सीडेंट का मामला हो या फिर मर्डर का और हाशिये पर खड़े लोग कैसे इसका शिकार बनते है, यह भी निर्देशक ने बखूबी दर्शाया है।
- पॉलिटिक्स पर भी एक सटायर किया है, एक सीन जब विद्या अपने बेटे से मिलने के लिए तड़प रही है, उस वक़्त तमाशा चल रहा होता है सड़क पर। निर्देशक ने इस एक सीन से काफी कुछ दर्शा दिया है।
- निर्देशक अच्छे से जानते हैं कि शेफाली और विद्या की बतौर एक्टर क्या-क्या खूबियां हैं, इसलिए बिना वजह के डायलॉग बाजी और बनावटी सीन्स के, उन्होंने दोनों के साइलेंस से प्ले किया है, फिल्म में ऐसे कई सीन हैं, जहाँ इन दोनों ही अभिनेत्रियों ने अपने एक्सप्रेशन से ही इमोशनल कर दिया है, तो काफी रुला दिया है।
- फिल्म का क्लाइमेक्स फिल्म की सबसे बड़ी खूबसूरती है।
- कुछ फिल्मों का अंत, आपको मालूम होता है, लेकिन फिर भी आप कहानी देखते रहना चाहते हैं, यह कहानी कुछ ऐसी ही है।
- मीडिया किस तरह इन दिनों काम करती है, उसका भी अच्छा चित्रण किया है।
- किरदारों का ग्रे शेड्स दिखाने में भी निर्देशक ने कमी नहीं की है।
- माँ के दिल और इमोशन को खूब अच्छे से दिखाया है निर्देशक ने।
बातें जो बेहतर हो सकती थीं
कुछ दृश्य और पॉवरफुल गढ़े जा सकते थे, दोनों अभिनेत्रियों के बीच में। चूँकि दोनों शानदार अभिनेत्रियां हैं, तो दोनों के फैंस दोनों को कुछ तगड़े और दमदार सीन में देखना चाहेंगे , वह फिल्म के लिए मास्टर स्ट्रोक भी हो सकता था।
अभिनय
निर्देशक सुरेश ने विद्या और शेफाली को ही इन किरदारों के लिए क्यों लिया है, यह आप फिल्म देखेंगे तो समझ जाएंगे। मैं तो वाकई में शेफाली शाह के किरदार से हैरान हूँ, उन्होंने एक हॉउस हेल्प का किरदार निभाया है, वह इस किरदार को करने में झिझक सकती थीं, लेकिन नहीं झिझकती हैं, उनके कुछ अकेले के सीन्स हैं, जो फिल्म के हाई पॉइंट्स हैं। शेफाली ने हर एक फ्रेम में अपना बेस्ट दिया है और उनको देख कर, मैंने तो यही महसूस किया कि मैं उनके अभिनय से कभी बोर नहीं हो सकती हूँ। विद्या बालन, जब रोती है स्क्रीन पर, तो लगता है कि वहां दौड़ कर जाऊं और उन्हें गले लगा लूँ। एक स्ट्रांग वुमन, एक स्ट्रांग व्यक्तित्व वाली और एक इमोशनल इंसान, विद्या के किरदार में कई लेयर्स हैं और उन्होंने हर लेयर्स में खुद को साबित किया है एक बार फिर। रोहिणी ने अपने हिस्से का काम बेस्ट तरीके से किया है। टीवी एक्टर इकबाल फिल्म में सरप्राइज की तरह हैं, उन्होंने काफी ध्यान आकर्षित किया है अपने किरदार से, बेहद कॉन्फिडेंट और कमाल लगे हैं।
मैं तो इन दोनों के ही फैंस से यही कहूँगी कि ऐसी एक्ट्रेसेज को लेकर और भी फिल्में बनती रहनी जरूरी हैं, ताकि हमें दमदार कहानी के साथ दमदार अभिनय देखने का भी मौका मिले। मैं तो उम्मीद करती हूँ कि जल्द ही इस फिल्म पर किसी निर्देशक की नजर पड़े और दोनों को फिर से किसी फिल्म में कास्ट किया जाए।