लता मंगेशकर को केएल सहगल के साथ गाने गाने थे, वह कभी नहीं गा पायीं, लेकिन बचपन में तो वह उनसे शादी का सपना देखती थीं तो मदन मोहन के एक गाने के लिए 14 रिटेक देने पड़े थे, लेकिन इस बात से भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा था, उनकी जिंदगी से जुड़े वाकई कुछ बेहद दिलचस्प प्रसंग मैंने यहाँ शामिल किया है, जिसमें मैंने लता जी को एक अलग ही रूप में पाया है, जिसमें उनका चंचल भाव, काम के प्रति सजग और लोगों से प्यार करने वालीं महिला का व्यक्तित्व सामने आया है।
सहगल की तरह गाने की खूब कोशिश करती थीं लता
लता मंगेशकर के बारे में यह बातें जगजाहिर हैं कि लता म्यूजिक सीखने के शुरुआती वर्षों में सहगल की तरह गाने की खूब कोशिश करती थीं। जबकि उनके घर में फिल्मी गानों को पसंद नहीं किया जाता था, लेकिन लता को इस मामले में पूरी छूट मिली थी। वे अपने पिता के साथ सहगल के गाने गाती रहतीं।सहगल की वे ऐसी दीवानी थीं कि उनसे शादी करने के सपने देखती थीं। लता ने खुद कई बार यह बातें इंटरव्यू में कही हैं कि , “जितना मुझे याद आता है, मैं हमेशा से केएल सहगल से मिलना चाहती थी। बच्चे के तौर पर मैं कहती थी, जब बड़ी हो जाऊंगी तो उनसे शादी करूंगी। तब मेरे बाबा मुझे समझाते थे कि जब तुम शादी करने जितनी बड़ी हो जाओगी तो सहगल साब शादी की उम्र पार कर चुके होंगे। लता को यह मलाल हमेशा रहा था कि वह सहगल साहब के साथ कभी गाने नहीं गा पायीं।
जब लता मंगेशकर को एक गाने के लिए 14 टेक देने पड़े
लता अपने काम में हमेशा से परफेक्शनिस्ट रही हैं, वह गानों में अधिक रीटेक्स नहीं देती थीं। लेकिन मशहूर संगीतकार मदन मोहन और स्वर कोकिला लता मंगेशकर की एक गाने के रिकॉर्डिंग में 14 तक देने पड़े थे। वह गीत था वर्ष 1969 में रिलीज फ़िल्म ‘चिराग’ का गीत ‘छाये बरखा बहार’ था। दरअसल, ‘छाये बरखा बहार’ गाने की धुन जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही कॉम्पिलकेटेड भी थी।रिकॉर्डिंग के वक्त म्यूजिशियन बार-बार कुछ न कुछ मिस्टेक कर देते और मदन मोहन जी इतने परफेक्शनिस्ट थे कि छोटी सी चूक भी उन्हें बर्दाश्त नहीं होती थीं। ऐसे में लता जी को भी 14 बार ये गाना गाना पड़ा। रिटेक देते-देते वह थक गई थीं, लेकिन उन्होंने कोई भी शिकायत नहीं की थी, इसके बाद मदन जी ने लता मंगेशकर को जिन्हें वह बहन मानते थे उनसे इतने सारे रिटेक के लिए के लिए माफी मांगनी चाही, तो लता जी ने मुस्कुराते हुए कहा मेरे सबसे ज्यादा हिट गाने वही रहे हैं, जो मैंने बहुत ज्यादा थकान के बाद रिकॉर्ड किए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि लता अपने काम के प्रति कितनी समर्पित और मेहनती थीं कि वह रिटेक देने से कतराती नहीं थीं।
मेहंदी हसन की अधूरी ख्वाइश
लता मंगेशकर और गुलाम अली दोनों ही एक दूसरे के मुरीद थे। गुलाम अली, लता मंगेशकर के साथ गाना रिकॉर्डिंग करना चाहते थे ,उन्होंने मशहूर शायर फरद शहजाद को भी बताया था। लेकिन अफ़सोस की बात यह रही कि जब तक लता जी के साथ रिकॉर्डिंग की बात हुई, तब तक मेहंदी हसन की तबीयत नासाज रहने लगी। वह भारत आकर लता के साथ रिकॉर्डिंग नहीं कर सकते थे। तब साल 2009 में फरद शहजाद की एक ग़ज़ल को मेहंदी हसन की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया और बाद में लता मंगेशकर की आवाज़ में। इस गीत के बोल तेरा मिलना अच्छा लगे हैं। और यह गाना आज भी बेहद लोकप्रिय है। यह गाना 2010 में रिलीज हुआ, लेकिन इसे सुनने से पहले ही मेहंदी हसन की मौत हो चुकी थीं।
लता मंगेशकर के करियर का सबसे कठिन गाना
सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के लिए उनके जीवन का एक गाना बेहद कठिन रहा। एक गाने के कंपोजिशन कोई लेकर मशहूर फिल्म म्यूजिक कम्पोजर सज्जाद हुसैन ने कहा था कि ये नौशाद मियां का गाना नहीं है। आपको मेहनत करनी पड़ी। कुछ साल पहले अपने एक इंटरव्यू में लता मंगेशकर ने इस बारे में जिक्र किया है कि मैं सज्जाद साहब के ‘संगदिल’ के गीतों को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती हूं। मैं यह बात कह सकती हूं कि जिस तरह का संगीत सज्जाद हुसैन बनाते थे। वैसा संगीत मुश्किल है। लता जी अपने प्लेबैक सिंगिंग के कैरियर में सबसे कठिन गीतों में से एक गीत सज्जद हुसैन की कंपीजोशिन ‘ए दिलरुबा नजरें मिला देती’ को मानती थीं।
अपने प्रिय संगीतकारों से फीस नहीं लेती थीं लता
लता मंगेशकर की यह भी खूबी रही कि वह अपने प्रिय संगीतकार, जो मेहनत से कुछ करना चाहते थे, उनकी कोशिशों को सलाम करती थीं। दरअसल, हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार चित्रगुप्त ने हिंदी फिल्मों के अलावा भोजपुरी की भी कई फिल्मों में संगीत दिया है। और उस दौर में भोजपुरी फिल्मों में लोक संगीत का काफी इस्तेमाल हो रहा था। लता जी और चित्रगुप्त काफी अच्छी बॉन्डिंग थी। चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर इतनी सहज होती थीं कि पूरी तन्मयता से उस गीत को मधुर बनाने में उनका साथ देती थीं। ऐसे में जब पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढइबो के गाने की बात हुई तो, लता जी ने चित्रगुप्त जी से कोई रुपये पैसे की मांग नही की थी, क्योंकि बस वह चित्रगुप्त के साथ काम करना चाहती थीं।
वाकई, लता मंगेशकर की जिंदगी के जुड़े यह प्रसंग दर्शाते हैं कि काम को लेकर लता ने अपना जो मान-सम्मान बरक़रार रखा, वह हमेशा प्रेरणा के लायक है। वह शिकायतों से दूर रहती थीं और अपने काम पर ही फोकस करती थीं, वाकई ऐसी कई बातें हैं उनकी जिंदगी की जिनसे प्रेरणा ली जा सकती है।