प्यार में कोई क्या न कर जाए, कभी डर वाले राहुल बन जाए या कभी अपनी सिमरन को पाने के लिए राज, सिमरन के गुस्सैल पापा के कदमों में झुक जाए। प्यार में तो सब जायज है। आकाश भाटिया की नयी फिल्म ‘लूप लपेटा’ भी एक अनोखी प्रेम कहानी है, मगर इस प्रेम कहानी में राज के लिए सिमरन भागी जा रही है और बस भागी ही जा रही है। लेकिन यहाँ वह अपने बॉय फ्रेंड के साथ नहीं, बल्कि अपने बॉय फ्रेंड की जान बचाने के लिए भागी जा रही हैं। आकाश भाटिया ‘लूप लपेटा’ के रूप में एक अलग मिजाज की लव स्टोरी लेकर आये हैं, जिसमें निर्देशन के लिहाज से काफी एक्सपेरिमेंट किये गए हैं। ‘चक दे इंडिया’ में अपनी जिंदगी जीने के लिए के लिए खिलाड़ियों को 70 मिनट मिलते हैं। यहाँ प्रेमिका को अपने प्रेमी को बचाने के लिए मिले हैं सिर्फ 50 मिनट, इस 50 मिनट में क्या रोमांच आता है, यही देखना ‘लूप लपेटा’ में मेरे लिए दिलचस्प रहा। ‘लूप लपेटा ‘सौ फीसदी प्रेम कहानी है, जिसमें नायिका अपने प्रेमी के लिए सॉफ्ट दिल वाली राज मल्होत्रा भी बन जाती है तो जरूरत पड़ने पर डर वाले राहुल का भी रूप धारण कर लेती है। तापसी पन्नू इस फिल्म की जान हैं और ताहिर राज भसीन ने खुद को और निखारा है इस फिल्म के माध्यम से। ‘लूप लपेटा ’90 के दशक में बनी जर्मन फिल्म ‘रन लोला रन’ का हिंदी रूपांतरण है। पौराणिक कथाओं में हमने सत्यवान और सावित्री की प्रेम कहानी सुनी है, यह मॉडर्न डे की वही प्रेम कहानी है। कई रोमांचक घटनाओं से गुजरती हुई इस फिल्म का पढ़ें पूरा रिव्यू
कहानी सावी( तापसी पन्नू) से शुरू होती है, जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ नयापन चाहती है। ऐसे में संयोग से उसकी मुलाक़ात होती है सत्या (ताहिर राज भसीन) से। दोनों एक दूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं। दोनों में कुछ भी एक जैसा नहीं है। लेकिन फिर भी सावी सत्या के लिए कुछ भी कर जाने को तैयार रहने वालों में से है। सत्या जिंदगी में सीरियस नहीं है, न ही उसे बहुत मेहनत करनी है, बस पैसे कमाने का उसे कोई शॉर्ट कट चाहिए, सावी को सत्या की हजार कमियों के बाजवूद कुछ फर्क नहीं पड़ता है। वह बस उससे प्यार करती है, तो करती है। अब ऐसे में कई बार सावी को मुसीबतों में फंसा चुका उसका बॉय फ्रेंड उसे एक बार फिर से 50 लाख जैसी भारी रकम जुगाड़ने के लिए फंसा बैठता है, वह ऐसा जान बूझ के नहीं करता, लेकिन हालात ऐसे हो जाते हैं। अब ऐसे में सावी किस तरह से रोमांचक अंदाज़ में अपने सत्या को बचाती है। यह रोमांचक घटनाएं देखने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी, मैं स्पोइलर नहीं देना चाहूंगी।
बातें जो मुझे अच्छी लगीं
निर्देशक ने नैरेटिव में काफी एक्सपेरिमेंट किये हैं
इस फिल्म की कहानी भले ही आम हो और देखने के बाद नयी सी न लगे, लेकिन इस कहानी में निर्देशक ने खूब सारे एक्सपेरिमेंट किये हैं। स्लो मोशन के साथ-साथ जिस तरह से म्यूजिक और दृश्यों और रंगों के साथ खेला है, आपको पता भी हो कि आगे क्या होने वाला है तो आप सिर्फ उस नए अनुभव के लिए यह पूरी फिल्म देख जायेंगे। इसे एक्सपेरिमेंटल थ्रिलर कहा जाये तो गलत नहीं होगा।
महिला किरदार है स्ट्रांग
इस फिल्म का क्लाइमेक्स कॉमन नहीं हैं, इसलिए भी आकर्षित करता है। हिंदी फिल्मों में जब भी थ्रिलर की बातें आती हैं, तो निर्देशक अपने पुरुष किरदार पर अधिक फोकस कर देते हैं, लेकिन इस फिल्म में महिला किरदार को न सिर्फ एक्शन करते, बल्कि हंसाते हुए, मास्टर प्लान बनाते हुए और खूब दौड़ते हुए दिखाया गया है।
ट्रीटमेंट
फिल्म में एक साथ और भी पैरेलल कहानियां हैं और वह जिस तरह से आपस में जुड़ती हैं, ऐसा लगता है कि कोई शानदार थ्रिलर उपन्यास पढ़ रही हूँ।
पौराणिक रेफरेंस
निर्देशक ने बड़ी ही चालाकी से एक खूबसूरत पौराणिक संदर्भ इस फिल्म में जोड़ा है। हम सभी अच्छी यारह से सत्यवान और सावित्री की प्रेम कहानी से वाकिफ हैं। इसे लेकर हमने कई पौराणिक कथाओं को सुना है कि किस तरह यमराज जब सत्यवान का प्राण हर कर, उसे ले जाने वाले होते हैं, सावित्री अपनी बुद्धिमानी से उनके प्राणों की रक्षा करती है। इस फिल्म में उसी सन्दर्भ को मॉडर्न टच दिया गया है।
अभिनय
तापसी पन्नू अभी पूरी तरह से फॉर्म में हैं। वह एक के बाद एक अलग अंदाज़ के किरदारों में दर्शकों के सामने आ रही हैं और यह अच्छी बात है कि वह लगातार अपने किरदारों के साथ एक्सपेरिमेंट कर रही हैं। वह किसी एक छवि में नहीं बंध रही हैं। तापसी की स्फूर्ति इस कहानी की जान हैं। ताहिर राज भसीन ने भी अलग मिजाज का काम किया है। अब इसके बाद उनके पास और भी नए तरीके की फिल्मों के ऑफर आने शुरू होंगे।श्रेया धन्वंतरि कुछ दृश्यों के लिए नजर आती हैं, लेकिन प्रभावित करती हैं। दिव्येंदु भट्टाचार्य के लिए बेहतरीन दौर है, उन्हें लगातार काम मिल रहे हैं और इस फिल्म में उन्होंने खुद को टाइपकास्ट होने से बचाया है। उनका किरदार बड़ा मजेदार है।
गीत संगीत
फिल्म में संगीत एकदम कहानी के मुताबिक़ है। खासतौर से बैकग्राउंड म्यूजिक आपको फिल्म अंत तक देखने के लिए प्रभावित करता है।
बातें जो और बेहतर हो सकती थीं
निर्देशक ने वाकई, इसे पूरी तरह एक्सपेरिमेंटल रूप दिया है, लेकिन तकनीकी रूप से जिस तरह उन्होंने मेहनत की है, सिर्फ कहानी में भी और नयापन लाते तो, इस फिल्म को देखने में और मजा आता।