अमूमन अच्छे घरों के लड़के, जब विदेश में पढ़ने जाते हैं, तो उनके या तो लौटने की उम्मीद नहीं होती है या फिर लौट कर आने के बाद, कई लाखों के पैकेज ज्वाइन कर लेने की उम्मीद होती है। कम से कम मैंने तो अपने इर्द-गिर्द ऐसे ही लोगों को देखा है। लेकिन बहुत आश्चर्य में डाल देती हैं उन दो लड़कों की सोच, जिनकी कहानी मैंने आज पर्दे पर देखी है और मेरे व आपके हम सबकी किताबों में इन दो लड़कों की कहानी कई जमाने से दर्ज है। यकीनन, किताबों में महत्वपूर्ण विषय होने के बावजूद, इन दो लड़कों पर बहुत अधिक ध्यान नहीं गया मेरा। मैं इस बात को शत -प्रतिशत स्वीकारना चाहूंगी। मैं दरअसल, यहाँ बात कर रही हूँ ‘रॉकेट बॉयज’ यानी होमी भाभा और विक्रम साराभाई की, जिनके बारे में मैंने या आपने किताबों में पढ़ा तो है, लेकिन शायद केवल परीक्षाओं में सवालों के जवाब देने के लिए, जबकि उनकी उपलब्धि को वहीं तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। इस बात के लिए ‘सोनी लिव’ की तारीफ़ करनी चाहिए कि ऐसे दौर में जहाँ, थ्रिलर सीरीज की होड़ है, उन्होंने साइंस से जुड़ा एक ऐसा विषय वेब सीरीज के रूप में चुना है,जिसके बारे में दर्शकों को जानना भी चाहिए और इसे हर जेनरेशन के लोगों को देखा भी जाना चाहिए। इस सीरीज में शो स्टॉपर हैं इश्वाक सिंह, उन्होंने जिस तरह से इसमें अभिनय किया है, आने वाले समय में उनके पास कई बेहतरीन प्रोजेक्ट्स आएंगे।इस सीरीज के मेकर्स ने ठीक इस विषय को लेकर वैसा ही रिसर्च किया है, जैसे होमी और विक्रम अपने प्रोजेक्ट्स को लेकर करते थे। मैं इस सीरीज की स्पेशल स्क्रीनिंग हर स्कूल में की जाने की सलाह भी जरूर देना चाहूंगी, यकीन मानिये आप निराश नहीं होंगे, बल्कि मेरी तरह ही आपको नयी चीजों की ही जानकारी मिलेगी और जब आप इस सीरीज को बिंज वॉच करने के बाद, तसल्ली से बैठेंगे तो आप महसूस करेंगे कि इस सीरीज ने आपको बतौर इंसान, बतौर प्रोफेशनल एक बेहतर इंसान बनाया है। मैं इस सीरीज की तारीफ़ क्यों कर रही हूँ, यह आप यूं समझिये।
बातें जो अच्छी लगीं
सिलसिलेवार तरीके से घटनाओं को दर्शाया है
‘रॉकेट बॉयज’ सीरीज की कहानी दो लड़कों की कहानी जरूर है, लेकिन यह आपको भारत के उस दौर में लेकर जाती है, जब यह सीरीज भारत के भारत बनने की कहानी है। इस सीरीज को कृपया हड़बड़ी में न देखें, क्योंकि कहानी में इतने सारे संदर्भ हैं और इतने सिलसिलेवार तरीके से बताये गए हैं कि उन्हें स्थिर से देखना जरूरी है। मैंने तो इस सीरीज को देखते हुए पूरे नोट्स बनाये हैं और तब जाकर, यह बातें लिख पा रही हूँ। आज हमें कितना गर्व महसूस होता है, जब हम कहते हैं कि भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक मुकाम हासिल किया है। मिशन मंगल भी फतेह किया है और आज हमारे देश के हिस्से में कई उपलब्धियां हैं। लेकिन उस दौर में सोचें, कम संसाधनों में किस तरह से महान वैज्ञानिकों ने योगदान दिया। इनकी उपलब्धि को केवल किताबों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि ऐसी ही सीरीज के माध्यम से सामने आना चाहिए।
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जब पराजय के बाद फिर से भारत के नींव मजबूत करने की बात आई
रॉकेट बॉयज की कहानी 1962 के चीन के हाथों भारत को मिली पराजय से शुरू होती है। उस वक़्त देश के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू परेशान हैं, वह चाहते हैं कि भारत के पास अपना परमाणु बम हो। होमी इसके पक्ष में हैं, लेकिन विक्रम नहीं। क्योंकि वह मानते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने जो जापान के साथ किया, वह सिर्फ दुनिया में तबाही लेकर आया, वह फिर से नहीं होना चाहिए। यहाँ से कहानी 1930 के फ्लैशबैक में जाती है, जिसे निर्देशक ने और खूबसूरती से दर्शाया है। इस सीरीज की यह भी खासियत रही है कि वर्तमान से फ्लैशबैक में जो ट्रांजिशन हुए हैं, वह कमाल के हुए हैं। विक्रम का सपना रॉकेट बनाने का है, होमी को परमाणु में ही दिलचस्पी है। लेकिन किस तरह दो सोच, एकदम अलग मिजाज के होने के बावजूद दोनों ने एक टीम के रूप में काम करके इतिहास रचा। यह आपको जरूर देखना और समझना चाहिए कि टीम वर्क में कितनी ताकत होती है और आपका अपना व्यक्तिगत सोच किस तरह आपके काम पर हावी नहीं होने देना चाहिए। इस कहानी में एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में जानना भी काफी रोचक है। आप इस सीरीज के एपिसोड को एक अध्याय के रूप में मानें, जिसमें आपको भारत के इतिहास और विज्ञान दोनों की दुनिया एक साथ देखने को मिलेगी।
मेकर्स ने किया है कमाल
इस सीरीज में कलाकारों का चयन, घटनाओं का चयन और इन सबके बीच, लोकेशन, बैकड्रॉप, और निर्देशन सबकुछ उल्लेखनीय है। शिद्दत से बनी इस सीरीज से आप आसानी से कनेक्ट हो पाएंगे, जैसे मैंने कनेक्ट महसूस किया। इसमें भाषणबाजी नहीं, बल्कि पोएट्री की तरह से काफी कुछ बताने की कोशिश है। निर्देशक ने कुछ थोपा नहीं है, बल्कि गो विद फ्लो के माध्यम से घटनाओं को समझाने की कोशिश की है।
निर्देशक और लेखन की टीम पूरी तरह से बधाई के पात्र हैं। साथ ही इस सीरीज की रिसर्च टीम को तो विशेष रूप से तारीफ़ मिलनी चाहिए।
अभिनय में बाजी मारी है जिम और इश्वाक सिंह ने
होमी और विक्रम दोनों के ही किरदारों में जिम सरभ और इश्वाक सिंह ने जान डाली है। दोनों ने न सिर्फ प्रभावी ढंग से इनके जीवन का चित्रण किया है, बल्कि अपने अभिनय शैली की एक यूनिकनेस को भी दर्शाया है। जिम को हालांकि हिंदी बोलने में जो असुविधाएं हुई हैं, वह कैमरे पर नजर आई हैं, उनको इस पर और मेहनत करने की जरूरत है। वहीं इश्वाक इस कदर इस किरदार में रमे हैं कि उन्हें देख कर आपको यकीन हो जायेगा कि अगर विक्रम सारा भाई आज होते तो वह ऐसे ही होते। इश्वाक लगातार अपने किरदारों से अपने हर प्रोजेक्ट में प्रभावित कर रहे हैं और इसलिए वह अच्छे निर्देशकों की चाहत भी बन चुके हैं। दिव्येंदु भट्टाचार्य का काम इसमें काफी बेहतरीन है। रजित कपूर में कुछ नयापन नजर नहीं आया है।
चीजें जो बेहतर हो सकती थीं
सीरीज में कुछ संदर्भ गैर जरूरी भी नजर आये हैं, जिन्हें केवल सीरीज की अवधि को बढ़ाने के लिए शामिल किया गया है, ऐसा लगता है। उनके बगैर भी यह सीरीज काफी शानदार सीरीज ही साबित होती।