हम में से ज़्यादातर लोगों को बॉलीवुड की मसालेदार और तड़क भड़क वाली फिल्में बहुत पसंद होती है । हम हर बार प्यार में पड़ जातें है जब शाहरुख़ खान किसी फिल्म में फैला कर अपने प्यार का इज़हार करते हैं, हम बॉलीवुड की मुन्नी और शीला की धुन पर भी नाच चुके हैं , और जब जब विलन ने हीरो की पिटाई की है तब तब हमारी भी सांसें रुकी है। हम फिल्मों से हर चीज़ सीख लेते हैं, चाहे वो फैशन हो या डायलॉग्स, या पत्रों का रहन सहन।बॉलीवुड हमेशा किसी न किसी तरीके से बड़े पैमाने पर हमें मनोरंजन देने का तरीका ढूंढ ही लेता है। पर आज ये उन फिल्मों के बारे में नहीं है।
कभी कभार कुछ ऐसी खूबसूरत फिल्में आती है जसमें न सिर्फ कहानी और गाने, बल्कि जान होती है।
ऐसी फिल्म जिसकी संबंधित कहानी, पटकथा, सूक्ष्मता और उसके पात्रों से हम प्यार में पड़ जाते हैं। ऐसी एक फिल्म जिसने हाल ही में कपूर एंड संस को हासिल करने में मदद की है। एक ऐसी फिल्म जो हमारे देखने और सोचने के तरीके को बदल देती है और हमें अपने सामाजिक विश्वासों से परे सोचने के लिए चुनौती देती है।और ऐसी ही एक फिल्म है कपूर एंड संस।
यह फिल्म एक मसखरे बुज़ुर्ग आदमी (जिसका किरदार ऋषि कपूर ने निभाया है) और उसके मरने से पहले फैमिली फोटो खिचवाने की इच्छा, और ये इच्छा जो जो पागलपन लेकर आती है, पर आधारित है। लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं, इस फिल्म ने न सिर्फ हमें हंसाया और रुलाया है,बल्कि हमारे दिल के हर एक तार को छुआ है। हर एक किरदार बहुत ही गहरा था, और हर किरदार चुप रह कर भी बहुत कुछ कह रहा था। और वो किरदार जिसने मेरे दिल को सबसे ज़्यादा छुआ वो था फवाद खान।
वैसे तो याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है लेकिन फिर भी आपको याद दिला दें के फवाद खान ने राहुल कपूर की भूमिका निभाई है , जो एक प्रसिद्द लेखक है और अपने परिवार से दूर लंदन में रहता है। अपने बचपन के घर वापस लौटना उसकी ज़िन्दगी में इतने ड्रामे लाएगी ऐसा उसने सोचा भी नहीं था। उसके और उसके भाई के बीच तनाव से लेकर उनके माता-पिता के रिश्ते में तनाव और अपने बेटे के लिए सही लड़की ढूढ़ने की उसकी माँ की कोशिशें । जैसे तैसे वो अपने आस-पास की हर चीज को ठीक करने का प्रबंधन करता है, उसकी व्यक्तिगत जिंदगी बिखर जाती है ,जब उसकी मां को पता चलता है कि उसका बेटासमलैंगिक है।
कुछ साल पहले, इसी बैनर द्वारा बनाई गयी फिल्म दोस्ताना में दो पुरुष थे जो समलैंगिक होने का नाटक करते थे। इसलिए, कपूर एंड संस पहली बार नहीं था कि सामूहिक अपील के साथ
इसलिए, कपूर एंड संस पहली बार नहीं था जब सामूहिक अपील के साथ एक व्यावसायिक फिल्म में समलैंगिक चरित्र था। हाँ, ये ज़रूर पहली बार था जब चरित्र को कहानी में एक मजेदार सहायक के रूप में उपयोग नहीं किया गया ।
फवाद ने उस चरित्र में परतें जोड़ दीं जो डर, भेद्यता और जटिलताओं को सामने लाती है, जो राहुल की परिस्थिति में हर कोई महसूस करता है । उनके ईमानदार निकटता ने किरदार को और ज़्यादा विश्वसनीय और सच्चा बना दिया।
इंडस्ट्री में ज़्यादातर ए-लिस्टर्स सुरक्षित खेलते हैं और सिर्फ वही किरदार निभाना पसंद करते हैं जो इंडस्ट्री में कहलते हैं। ऐसा करने से, वे अकसर चुनौतीपूर्ण अवसरों और यहाँ तक कि संभावनाओं को लिखे जाने का मौका ही नहीं देते हैं। लेकिन जिस तरह से कपूर एंड संस ने बॉक्स ऑफिस पर नया मुकाम हासिल किया उस ना केवल दर्शकों, बल्कि इंडस्ट्री के कलाकारों की भी धारणा बदल दी। आईएएनएस के साथ एक पुराने साक्षात्कार के दौरान, रणबीर कपूर से पूछा गया कि क्या वह फवाद की तरह स्क्रीन पर एक समलैंगिक चरित्र निभाना चाहेंगे, तो उन्होंने कहा:
” ज़रूर… लेकिन अब ये पहले ही किया जा चूका है… फवाद ने हम सभी के लिए रास्ता बना दिया है, और अब हम सभी के लिए उस पर चलना आसान होगा। लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो अगर पहले मुझसे ये सवाल किया जाता तो मैं मना कर देता।”
लंबे समय से, भारत में अपनी लैंगिकता की खोज, चर्चा और स्वीकारता को बुरा और बेहूदा माना जाता है। यही कारण है कि हमें इस बारे में बातचीत शुरू करने की ज़रूरत है, जो हमारे आस-पास के लोगों को अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार जीने में मदद करे। हमें फवाद, राजकुमार राव, मनोज वाजपेयी और इन्ही की तरह और किरदारों की ज़रुरत है, समाज के बोझ और दबाव से हट कर अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से और दूसरों को उनके तरह से जीने की सीख देने में मदद करते हैं और एक नया नज़रिया देते hai।
हमें अभी वहां तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय करना है, लेकिन सिनेमा जैसे माध्यम की दुनिया भर की पहुँच और अपील समाज को और अधिक प्रगतिशील बनने में मदद करने के लिए अद्भुत काम कर सकती है।